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मो.मा. प्रकाश
तातें तिनि कषायनिका कार्य प्रगट कर सकते नाहीं । तिनिकरि अंतरंगविषे महादुखी हैं । बहुरि कदाचित् किंचित् कोई प्रयोजन पाइ तिनिका भी कार्य हो है । बहुरि हास्य रति कषाय हैं परंतु बाह्यनिमित्त नाहीं तातैं प्रगट होते नाहीं कदाचित् किंचित् किंचित् किसी कारण हो हैं । बहुरि अरति शोक भय जुगुप्सा इनिके बाह्य कारण बनि रहे हैं तातें ए कषाय प्रगट तीव्र होइ हैं । बहुरि वेदनीविषै नपुन्सक, वेद है । सो इच्छा तौ बहुत और स्त्री पुरुषस्यों रमनेका निमित्त नाहीं तातैं महापीड़ित हैं । ऐसें कषायनिकरि श्रति दुखी हैं । बहुरि वेदनीयविषै साताहीका उदय है ताकरि तहां अनेक वेदनाका निमित्त है | शरीरविषै कोढ़ कास खासादि अनेक रोग युगपत् पाइए है अर क्षुधा तृषा ऐसी है जो सर्वका भक्षण पान किया है है । अर तहांकी माटीका भोजन मिले है सो माटी भी ऐसी है जो इहां आवै तो ताकी दुर्गंध केई कोशनिके मनुष्य मरि जाएं। अर शीत उष्ण तहाँ ऐसा है जो लक्षयोजनका लोहका गोला होइ सो भी तिनिकरि भस्म होइ जाय । कहीं शीत है कहीं उष्ण है । बहुरि पृथिवी तहां शस्त्रनितें भी महातीच्ण कंटकनिकरि सहित है । बहुरि तिस पृथिवीविषै वन हैं सो शस्त्रकी धार समान पत्रादि सहित हैं । नदी है सो ताका स्पर्श भये शरीर खंड खंड होइ जाय ऐसे जल सहित है । पवन ऐसा प्रचंड है जाकरि शरीर दग्ध हुवा जाय है । बहुरि नारकी नारकी अनेक प्रकार पीड़ें घारणीमें पेलें खंड खंड करें हांडीमें रांधे कोरडा मारैं तप्त लोहादिकका
हद