SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 557
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मो.मा. प्रकाश 1 ऊंचा नीचा मानें। ऊंचाकुलवालाकों नीचा होनेके भयका अर नीचाकुलवालाकों पाएहुए नीच पने का दुख ही है। तो याका सांचा उपाय कहा है ? सो कहिए है। सम्यग्दर्शनादिकतै ऊंच नीच कुलविष हर्ष विषाद न माने बहुरि तिनही जाकी बहुरि पलटनि न होय ऐसा । सर्वते ऊंचा सिद्ध पद पावै तब सर्व दुख मिटै सुखी होइ । या प्रकार कर्मके उदयकी अपेक्षा मिथ्यादर्शनादिकके निमित्त संसारविषै दुख ही दुख पाइए है ताका वर्नन किया। अब इस । दुःखकों पर्याय अपेक्षाकरि वर्नन करिए है इस संसारविषे बहुत काल तो एकेन्द्रिय पर्यायहीविषे बीते है। तातें अनादिही तो नित्यनिगोदविषै रहना, बहुरि तहांतें निकसना ऐसा जैसें भारभूनतें चणाका उछटि जाना सो| तहांतें निकसि अन्य पर्याय धरै तो त्रसविर्षे तो बहुत थोरे ही काल रहै। एकेन्द्रीहीविर्षे बहुत | काल व्यतीत करै है। तहां इतरनिगोदविषै बहुत रहना होइ । अर कितेक काल पृथिवी अप तेज वायु प्रत्येक वनस्पतिविषै रहना होय। नित्यनिगोदतें निकसे पीछे त्रसविषै तो रहनेका | उत्कृष्ट काल साधिक दोहजार सागर ही है । एकेन्द्रियविषै उत्कृष्ट रहनेका काल ऐसा है जाके | | अनन्तवाँ भागविणे भी अनन्ते सागर हो हैं । तातें इस संसारीक मुख्यपर्ने एकेन्द्रिय पर्यायविषे ही काल व्यतीत हो है । तहां एकेन्द्रियकै ज्ञानदर्शनकी शक्ति तो किंचिन्मात्र ही रहे है । एक । स्पर्शन इन्द्रियके निमित्ततें भया मतिज्ञान अर ताके निमित्ततें भया श्रुतज्ञान अर स्पर्शनइंद्रिय --
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy