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________________ मा.मा. प्रकाश दिकै आधीन सुख दुख भासै है । ताका समाधान, ___ आत्माका तौ ज्ञान इन्द्रियाधीन है। अर इन्द्रिय शरीरका अंग है सो यामैं जो अवस्था वीतै ताका जाननैरूप ज्ञान परिणमें ताकी साथि ही मोहभाव होइ । ताकरि शरीर अवस्थाकरि सुखदुःख विशेष जानिए है। बहुरि पुत्रधनादिकस्यों अधिक मोह होइ तो अपना शरीरका कष्ट सहै ताका थोरा दुःख मानै उनकों दुःख भये वा संयोग मिटें बहुत दुःख माने । अर मुनि हैं सो शरीरका पीड़ा होतें भी किछु दुःख मानते नाहीं । तातें सुख दुःख मानना तौ | | मोहहीकै आधीन है । मोहकै अर वेदनीयकै निमित्तनैमित्तिक संबंध है, तातें साता असावाका | उदयतें सुख दुःखका होना भास है। बहुरि मुख्यपने केतीक सामग्री साताके उदयतें हो है केतीक असाताका उदयतें हो है तातें सामग्रीनिकरि सुख दुःख भास है। परन्तु निर्धार किए | मोहहीतें सुख दुःखका मानना हो है औरनिकरि सुख दुःख होनेका नियम नाहीं । केवलीकै | साता असाताका भी उदय है अर सुख दुःखकों कारण सामग्रीका भी संयोग है । परन्तु मोह। का अभावतें किंचिन्मात्र भी सुख दुःख होता नाहीं तातें सुख दुःख मोहजनित ही मानना । | तातें तू सामग्रीके दूरकरनेका वा होनेका उपायकरि दुःख मेट्या चाहै सुखी भया चाहै सो यह उपाय झूठा है, तो सांचा उपाय कहा है ? सम्यग्दर्शनादिकर्ते भ्रम दूरि होय तब सामग्रीत सुख दुःख भासे नाहीं अपने परिणामहीते भासै । बहुरि यथार्थ विचारका अभ्यासकरि अपने
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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