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________________ तारणतरण श्रावकाचार ॥४१॥ बंध है।कषाय अधिक होती है तो अधिक कालके लिये, कषाय कम होती है तो कम कालके लिये ठहरते हैं। इसीके भीतर भीतर अपना फल दिखाकर कर्म झड़ जाते हैं। (५) संवर तत्व-आने वाले कर्म पुगलोंको रोक देना संवर है, जिन २ मन, वचन, कायकी प्रवृत्तिसे कर्म पुगल आते हैं उन २ को रोकनेसे कर्म पुद्गल नहीं आते हैं। मिथ्यात्वभावके रोकनेके लिये सम्यग्दर्शन, अविरत भावके रोकनेके लिये अहिंसादि पांच व्रतोंका पालन, प्रमाद रोकनेके लिये अपमावभाव, कषाय रोकने के लिये वीतराग परिणति, योगोंको रोकने के लिये मन, वचन, कायकी गति संवरके करनेवाले हैं। जब कमें आएंगे नहीं तो उनका बंध नहीं होगा। (क) निजरा तत्त्व-कर्म पुद्गलोंको जो बंध हुए हैं उनको शीघ्र ही आत्माके पाससे दर कर ४ देना-निर्जरा है। यह निर्जरा तपके द्वारा किये हुए आत्मध्यानके बलसे जो वीतरागता पैदा होती है उससे होती है।आत्मध्यानसे भवभवके बांधे कर्म एकदम गिरने लगते हैं। इसे अविपाक निर्जरा कहते हैं। जो कर्म अपने समयपर पक करके फल देते हैं उसे सविपाक निर्जरा कहते हैं। (७) मोक्ष तत्व-नए काँको रोकते हुए, पुराने कमाको दूर करते हुए व बंधके कारण भावोंका निरोध होते हुए सर्व कमाँसे जीवका रहित होजाना मोक्ष तत्व है। इन सात तत्वों में व्यवहार नयसे जीव, संवर, निर्जरा और मोक्ष ग्रहण करने योग्य है परंतु निश्चय नयसे इनमेंसे अपने एक शुद्ध आत्माको ही ग्रहण करना चाहिये, अन्य सर्वको त्याग करने योग्य मानना चाहिये । ऐसा निश्चय में लाकर जब ऊपर लिखित चार उपायोंको नित्य करता रहेगा-अधिक ध्यान सामायिकमें लगाएगा व वैराग्यकी भावना भाएगा कि सिवाय मेरे शुद्ध आत्माके और सब मेरा नहीं है, संसार असार है, शरीर अशुचि है, भोग रोगके समान है, आठ कर्मका संयोगसंसारमें जन्म मरणादि दुःखोंका कारण है, तब भावना भाते भाते मुख्यतासे आत्माका चितवन करते करते एक समय ऐसे भाव चढ़ जाते हैं कि उनके प्रभावसे सम्यदर्शनके विरोधक ऊपर लिखित सात या पांच V प्रकृतियोंका उपशम होकर सबसे प्रथम उपशम सम्यग्दर्शनका लाभ होता है। तब अपने शुद्ध स्वरूपका सचा भान होजाता है। सच्चा अनुभव होजाता है। आत्माका आनंद झलक जाता है कि जो आत्महित करना चाहें उनको उचित है कि वे सत्यकी प्राप्तिके लिये तत्वोंके मननका पुरुषार्थ सदा करते रहें।
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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