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मो.मा. प्रकाश
होय नाहीं । तातें कोई कषायका कोई कार्य सिद्ध भए भी दुःख दूर कैसे होइ । बहुरि याकै । अभिप्राय तौ सर्वकषायनिका सर्व प्रयोजन सिद्ध करनेका है। सो होइ तौ सुखी होइ । सो तो कदाचित् होइ सकै नाहीं । तातें अभिप्रायविर्षे शास्वता दुःखी ही रहै है। तातें कषायनिका प्रयोजनकौं साधि दुःख दूरि करि सुखी भया चाहै है, सो यह उपायं झूठा ही है । तौ । सांचा उपाय कहा है ? सम्यग्दर्शनज्ञानतें यथावत् श्रद्धान वा जानना होइ, तब इष्ट अनिष्ट-11 बुद्धि मिटै । बहुरि तिनहीके बलकरि चारित्रमोहका अनुभाग हीन होई । ऐसे होते कषायनिका। |अभाव होई, तब तिनिकी पीड़ा दूरि होय तब प्रयोजन भी किछ रहे नाहीं। निराकुल होनेत | महासुखी होइ । तातें सम्यग्दर्शनादिक ही इस दुःख मेटनेका सांचा उपाय है । बहुरि अंतरायका उदयतें जीवके मोहकरि दान लाभ भोग उपभोग वीर्य शक्तिका उत्साह उपजै, परन्तु | होइ सके नाहीं । तब परम आकुलता होइ सो यह दुःखरूप है ही। याका उपाय यह करै है,। | जो विघ्नके बाह्य कारन सूझै तिनिके दूरि करनेका उद्यम करै सो यह झूठा उपाय है । उपाय || | किये भी अन्तरायका उदय होते विघन होता देखिए है। अन्तरायका क्षयोपशम भये, बिना
उपाय भी विघन न हो है। तातें विधनका मूलकारन अन्तराय है। बहुरि जैसें कूकराकै | पुरुषकरि बाही हुई लाठीको लागी । वह कूकरा लाठीस्यों वृथा ही द्वेष करै है। तैसें जीवकै अन्तरायकरि निमित्तभूत किया बाह्य चेतन अचेतन द्रव्यकरि विघन भया। यह जीव तिनि