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________________ मो.मा. प्रकाश उपजावै रोवै पुकारै असावधान होइ जाय अपना अंगघात करै मरि जाय । किछू सिद्धि नाहीं | तो भी आप ही महादुःखी हो है। बहुरि जब भय उपजै है तब काहूको इष्टवियोग अनिष्ट संयोगका कारन जानि डरै अतिविह्वल होइ भागै वा छिपै वा सिथिल होइ जाइ कष्ट होनेके ठिकाने प्राप्त होइ वा मरि जाय सो यह दुःखरूप ही है । बहुरि जुगुप्सा उपजै है तब अनिष्ट वस्तुकौं घृणा करै । ताका तौ संयोग भया आप घृणाकरि भाग्या चाहै खेदखिन्न होइ महादुःखकौं पात्र है । बहुरि तीनूं वेदनिकरि जब काम उपजे है तब पुरुषवेदकरि स्त्रीसहित रमने की अर स्त्रीवेदकरि पुरुषसहित रमनेकी अर नपुन्सकवेदकरि दोऊनिस्यों रमनेकी इच्छा हो है । तिसकरि अति व्याकुल हो है । आताप उपजै है। निर्लज्ज हो है धन खर्चे है । अपजसकौं न गिनै है । परंपरा दुःख होइ वा दंडादिक होइ ताकौं न गिनै है। काम पीड़ातें बाउला हो है । मरि जाय है । सो रसग्रंथनिविषे कामकी दश दशा कही हैं । तहां बाउला होना मरन | होना लिख्या है। वैद्यकशास्त्रनिमें ज्वरके भेदनिविषै कामज्वर मरनका कारन लिख्या है। प्रत्यक्ष कामकरि मरनपर्यन्त होते देखिए है। कामान्धकै किछ विचार रहता नाहीं । पिता, पुत्री वा मनुष्य तिर्यंचणी इत्यादितें रमने लगि जाय है । ऐसी कामकी पीड़ा महादुःखरूप है। या प्रकार कषाय वा नोकषायनिकरि अवस्था हो है । इहां ऐसा विचार आवै है जो इनि अवस्थानिविषै न प्रवत्त तो क्रोधादिक पी . अर इनि अश्स्थानिविषै प्रवत्र्ते तो मरनपर्यन्त कष्ट
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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