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मो.मा.
प्रकारा
ताको विवाहादि क.यनिविषे खरचै वा देना करि भी खर्चे । मूए पीछे हमारा जस रहेगा। ऐसा विचारि अपना मरन करिके भी अपनी महिमा बधावै । जो अपना सन्मानादि न करें ताको भयादिक दिखाय दुःख उपजाय अपना सन्मान करावै । बहुरि मान होते कोई पूज्य बड़े | होहिं तिनिका भी सन्मान न करै, किछू विचार रहता नाहीं । बहुरि अन्य नीचा आप ऊंचा न दीसै तो अपने अंतरंगविणे आप बहुत संतापवान् होय वा अपने अंगनिका घात करै वा | विषादिकरि मरि जाय ऐसी अवस्था मान होते हो है । बहुरि जब याकै मायाकषाय उपजै, | तष छलकरि कार्य सिद्ध करनेकी इच्छा होय । बहुरि ताके अर्थि अनेक उपाय विचारे, नानाप्रकार || कपटके वचन कहै, कपटरूप शरीरकी अवस्था करे, बाह्य वस्तुनिकों अन्यथा दिखावै, बहुरि जिनविणे अपना मरन जाने ऐसे भी छल करै बहुरि कपट प्रगट भए अपना बहुत बुरा | होइ मरनादिक होइ तिनिकों भी न गिनै । बहुरि माया होते कोई पूज्य वा इष्टका भी संबंध | बनें तो उनस्यौं भी छल करै, किछू बिचार रहता नहीं । बहुरि छलकरि कार्यसिद्धि न होइ तो आप बहुत संतापवान होय, अपने अंगनिका घात करै, वा विषादिकरि मरि जाय। ऐसी अवस्था माया होते हो है । बहुरि जब याकै लोभ कषाय उपजै तब इष्टपदार्थका लाभकी इच्छा होय ताकै अर्थि अनेक उपाय विचारै। ताके साधनरूप वचन बोले । शरीरकी अनेक चेष्टा करै । बहुत कष्ट सहै । सेवा करै विदेशगमन करै जाकरि मरन होता जानै सो भी कार्य करै । घना