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मो.पा.
प्रकारा
मजनित दुःखकाउपाय भ्रम दूरि करना ही है । सो भ्रम दूरि होनेते सायशद्धान होय सो ही सत्य उपाय जानना । बहुरि चारित्रमोहके उदयतें क्रोधादि कषायरूप वा हास्यादि नोकषायरूप जीवके भाव हो हैं । तब यह जीव क्लेशवान् होइ दुःखी होला संता विह्वल होइ नाना कुकार्यनिविषे प्रवर्ते है। सोई दिखाइए है-जब याकै क्रोधकषाय उपजे, तब अन्यका बुरा करनेकी इच्छा होइ । बहुरि ताकेअर्थि अनेक उपाय विचारै। मरमच्छेद गालीप्रदानादिरूप वचन बोले। अपने अंगनिकरि वा शस्त्रपाषाणादिकरि घात करै।अनेक कष्ट सहनेकरि वा धनादि खर्चनेकरि वा मरणादिकरि अपना भी बुरा करि अन्यका बुरा करनेका उद्यम करै अथवा औरनिकरि बुरा होता जानै तौ औरनिकरि बुरा करावै । वाका स्वयमेव बुरा होय तो अनुमोदना करै। वाका बुरा भए अपना किछू भी प्रयोजनसिद्धि न होय तो भी वाका बुरा करै । बहुरि क्रोध | होते कोई पूज्य वा इष्ट भी बीचि आवै तौ उनको भी बुरा कहै । मारने लगि जाय,किछू विचार रहता नाहीं । बहुरि अन्यका बुरा न होइ तो अपने अंतरंगविणे आप ही बहुत संतापवान होइ वा अपने ही अंगनिका घात करै वा विषादिकरि मरि जाय ऐसी अवस्था क्रोध होते हो है। बहुरि जब याकै मानकषाय उपजै तब औरनिकों नीचा वा आपकों ऊंचा दिखावनेकी इच्छा होइ। बहुरि ताके अर्थि अनेक उपाय विचारै अन्यकी निंदा करै आपकी प्रशंसा करै । वा अनेक प्रकारकरि औरनिकी महिमा मिटावें आपकी महिमा करै।महाक टकरि धनादिकका संग्रह किया
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