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________________ मो.मा. प्रकाश *100***120**** सो यह कर्मका क्षयोपशमकै आधीन है । किसीका शरीर पुष्ट है ताकें ऐसी शक्ति घाटि देखिए है । काहुकें शरीर दुर्बल है ताकै अधिक देखिए है । तातें भोजनादिककरि इन्द्रिय पुष्ट किए किछू सिद्धि है नाहीं । कषायादि घटनेंतें कर्मका क्षयोपशम भए ज्ञानदर्शन बधै तब विषयग्रहणकी शक्ति बधै है । बहुरि विषयनिका संयोग मिलावै सो बहुतकालाई ह नाहीं अथवा सर्व विषयनिका संयोग मिलता ही नाहीं । तातें यह आकुलता रहिबो ही करै । बहुरि तिनिविषयनिकों अपने अधीन राखि शीघ्र शीघ्र ग्रहण करै सो वे आधीन रहते नाहीं । तौ जुड़े द्रव्य अपने अधीन परिणमै हैं, वा कर्मोदयके आधीन हैं । सो ऐसा कर्मका बन्ध यथायोग्य शुभभाव भए होय । फिर पीछे उदय आवे सो प्रत्यक्ष देखिए है । अनेक प करतें भी कर्मका निमित्त बिना सामग्री मिले नाहीं । बहुरि एक विषयकों छोड़ि अन्यका ग्रहणकौं ऐसें हापटा मारै है सो कहा सिद्ध हो है । जैसे मणकी भूखवालेकों का मिल्या त भूख कहा मिटै, तैसें सर्वका ग्रहणकी जाकेँ इच्छा ताकै एक विषयका ग्रहण भए इच्छा कैसे मिटै ? इच्छा मिटे बिना सुख होता नाहीं । तातें यह उपाय झूठा है । कोऊ पूछे कि इस उपाय केई जी सुखी होते देखिए है सर्वथा झूठ कैसे कहो हो ताका समाधान, सुखी तौ न हो है भ्रमतें सुख माने है । जो सुखी भया तो अन्य विषयनिकी इच्छा कैसे रहैगी। जैसैं रोग मिटे अन्य औषध काहेकौं चाहै तैसें दुःखमिटे अन्य विषयकों का कौं चाहे । 1 ७२
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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