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मो.मा. प्रकाश
लोही निकसै ताका स्वाद लेय ऐसे मानै यह हाड़का स्वाद है। तैसें यह जीव विषयतिको जानै ताकरि अपना ज्ञान प्रवत ताका स्वाद लेय ऐसैं मानै यह विषयका स्वाद है सो विषय मैं तो स्वाद है नाहीं, आप ही इच्छाकरी थी आप ही जानि आप ही आनन्द मान्या । परन्तु में अनादि अनन्त ज्ञानस्वरूप आत्मा हों, ऐसा निःकेवलज्ञानका तो अनुभवन है। नाहीं । बहुरि में नृत्य देख्या राग सुन्या फूल सूंध्या पदार्थ स्पर्ध्या खाद जान्या मोकों यह जानना इस प्रकार ज्ञेयमिश्रित ज्ञानका अनुभवन है ताकरि विषयनिकरि ही प्रधानता भासै है। ऐसे इस जीवकै मोहके निमित्तते विषयनिकी इच्छा पाइए है सो इच्छा तो त्रिकालवर्ती सर्वविषयनिके ग्रहण करनेकी है में सर्वकौं स्पर्शों सर्वकों वादों सर्वकौं संघौं सर्वकों | देखौं सर्वकौं सुनौं सर्वको जानौं सो इच्छा तौ इतनी है अर शक्ति इतनी ही है जो | इंद्रियनिकै सन्मुख भया वर्तमान स्पर्श रस गंध वर्ण शब्द तिनिविणे काहूकौं किंचिन्मात्र
ग्रहै वा स्मरणादिकतै मनकरि किछू जानै सो भी बाह्य अनेक कारन मिले सिद्ध होय ! ताते। | इच्छा कबहुं पूरन होय नाहीं। ऐसी इच्छातौ केवलज्ञान भए सम्पूर्ण होय। क्षयोपशमरूप | इंद्रियकरि तो इच्छा पूर्ण होय नाहीं तातें मोहके निमित्तते इंद्रियनिकै अपने अपने विषय ग्रहणकी निरन्तर इच्छा रहिबो ही करै ताकरि आकुलित हुवा दुःखी हो रहा है। ऐसा दुःखी हो रहा है जो एक कोई विषयका ग्रहणकै अर्थ अपना मरनको भी नाहीं गिनै है । जैसे