________________
मो.मा.
प्रकाश
| इसहीकरि स्पर्शन रसन आदि द्रव्यइन्द्रिय निपजें हैं वा हृदयस्थानविर्षे आठ पांखड़ीका फल्या-| | कमलके आकार द्रव्यमन हो है। बहुरि तिस शरीरहीविषै आकारादिकका विशेष होना अर वर्णादिक |
का विशेष होना अरस्थूलसूक्ष्मवादिकका होना इत्यादि कार्य निपजै हैं सोए शरीररूप परणए परमा-1 | णु ऐसे परिणमें हैं। बहुरि श्वासोच्छ्वास वा खर निपजें हैं सोए भी पुद्गलके पिंड हैं अर शरीरकों। एक बन्धानरूप हैं । इनविषै भी आत्माके प्रदेश व्याप्त हैं। तहां श्वासोच्छ्वास तौ पवन है सो | जैसें आहारकों ग्रहै नीहार को निकासै तब ही जीवनौ होय तैसें बाह्यपवनकों ग्रहै अर अभ्यंतरपवनको निकासैतब ही जीवितव्य रहै। तातॆश्वासोच्छ्वास जीवितव्यका कारन है इस शरीरविषै जैसे हाड़ मांसादिक हैं तैसें ही पवन जानना। बहुरि जैसे हस्तादिकसौं कार्य करिए तैसें ही पवनतें कार्य करिए है। मुखमैं ग्रास धरथा ताकौं पवनतें निगलिए है, म्लादिक पवनते ही बाहरि | | काढ़िए है तैसे ही अन्यजानना । बहुरि नाड़ी वा वायुरोग वा बायगोला इत्यादि ए पवनरूप शरीरके अंग जानने । बहुरि स्वर है सो शब्द है, सो जैसें बीणाकी तांतिकू हलाए भाषारूप होने योग्य पुद्गलस्कन्ध हैं ते साक्षर वा अनक्षर शब्दरूप परिणमें हैं तैसें तालवा होठ | | इत्यादि अंगनिकों हिलाएं भाषापर्याप्तिविषै ग्रहे पुद्गलस्कन्ध हैं ते साक्षर वा अनक्षर शब्दरूप परिणमै हैं । बहुरि शुभ अशुभ गमनादिक हो हैं। इहां ऐसा जानना जैसें दोयपुरुषनिके इकदंडी बेड़ी है । तहां एक पुरुष गमनादि किया चाहै अर दूसरा भी गमनादि करै तौ