SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 505
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मो.मा. प्रकाश हास्थ शोक युगलविषे रति अरति युगलविणे तीनों वेदनिविष एकै काल एक-एक ही प्रकृति| का बंध हो है । अघातियानिकी प्रकृतिविषे शुभोपयोग होते सातावेदनीय आदि पुण्यप्रक-|| | तीनिका बंध हो है । अशुभयोग होते असातावेदनीय आदि पाप प्रकृतीनिका बंध हो है। मिश्रयोग होते कैई पुण्यप्रकृतीनिका कैई पापप्रकृतीनिका बंध हो है । ऐसें योगके निमित्त | कर्मका आगमन हो है। तातें योग है सो आस्रव है। बहुरि याकरि ग्रहे कर्मपरमाणनिका | नाम प्रदेश है तिनिका बंध भया अर तिनिविषै मूल उत्तरप्रकृतीनिका विभाग भया ताते योगनिकरि प्रदेशबंध वा प्रकृतिबंधका होना जानना । बहुरि मोहके उदयतें मिथ्यात्व क्रोधा-11 दिक भाव हो हैं, तिनि सबनिका नाम सामान्यपनै कषाय है । ताकरि तिनि कर्मप्रकृतिनिकी | स्थिति बंधे है सो जितनी स्थिति बंधै तिसविषै आवाधा काल छोड़ि तहां पीछे यावत् बंधी स्थिति पूर्ण होय तावत् समय-समय तिस प्रकृतिका उदय माया ही करै । सो देव मनुष्य | तिर्यंचायु बिना अन्य सर्वघातिया-अघातिया प्रकृतीनिका अल्पकषाय होते थोरा स्थितिबंध होय, बहुत कषाय होते घना स्थिति बंध होय । इनि तीन आयूनिका अल्पकषायतें बहुत,अर बहुत कषायतें अल्प स्थितिबंध जानना। बहुरि तिस कषायहीकरि तिनि कर्मप्रकृतीनिविणे अनुभागशक्तिका विशेष हो है सो जैसा अनुभाग बँधै तैसा ही उदयकालविषै तिनि प्रकृतीनिका घना वा थोरा फल निपजै है । तहां घाति कर्मनिकी सर्व प्रकृतीनिविषै वा अघाति क
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy