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मो.मा.
प्रकाश
ज्ञेयाधिकार है तहां कह्या है। रागादिकका कारण तौ द्रव्य कर्म है, अर द्रव्यकर्मका कारण रागादिक है । तब उहां तर्क करी जो ऐसे इतरेतराश्रयदोष लागै वह वाकै आश्रय वह वाके आश्रय कहीं भाव नाहीं है, तव उत्तर ऐसा दिया है
नैवं अनादिप्रसिद्धद्रव्यकर्मसम्बन्धस्य तत्र हेतुत्वेनोपादानात् ।
याका अर्थ-ऐसे इतरेतराश्रय दोष नाहीं है। जाते अनादिका खयंसिद्ध द्रव्य| कर्मका संबंध है ताका तहां कारणपनाकरि ग्रहण किया है । ऐसें आगममें कह्या है। बहुरि | । युक्तिते भी ऐसे ही संभव है जो कर्मनिमित्त विना पहले जीवकै रागादिक कहिए तौ रागादिक जीवका निज खभाव होय जाय जाते परनिमित्त बिना होइ ताहीका नाम स्वभाव है। तातें | कर्मका संबंध अनादि ही मानना । बहुरि इहां प्रश्न जो न्यारे-न्यारे द्रव्य अर अनादित | तिनिका संबंध कैसे संभवै । ताका सभाधान,
जैसे ठेठिहीसूं जल दूधका वा सोना किट्टिकका वा तुष कणका वा तैल तिलका संबंध देखिये है नवीन इनिका मिलाप भया नाहीं तैसें अनादिहीसौं जीवकर्मका संबंध | जानना, नवीन इनिका मिलाप नाहीं भया । बहुरि तुम कही कैसे संभवै ? अनादितै जैसे केई जुदे द्रव्य है तैसें केई मिले द्रव्य हैं इस संभवनेंविणे किछ विरोध तौ भासता नाहीं। बहुरि प्रश्न जो सम्बन्ध वा संयोग कहना तौ तब संभवै जब पहले जुदे होइ पीछे मिलें । इहां