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प्रकाश
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मो.मा.
। योग्य हो हैं । सो अरहंत सिद्धनिकै तो संपूर्ण रागादिककी हीनता अर ज्ञानको विशेषता होने। करि संपूर्ण वीतरागविज्ञानभाव संभ है। अर आचार्य उपाध्याय साधूनिकै एकोदेश रागा
दिककी हीनता अर ज्ञानकी विशेषता होनेकरि एकोदेश वीतरागविज्ञान भाव संभव है। तातें ते अरहंतादिक स्तुतियोग्य महान जानने । वहुरि ए अरहंतादिक पद हैं तिनविषं ऐसा जानना। जो मुख्यपनै तो तीर्थंकरका अर गौणपनैसर्वकेवलीका अधिकार है। प्राकृतभाषाविषै अरहंत, अर संस्कृत विष अर्हत् ऐसा नाम जानना।बहुरि चौदहवां गुणस्थान कैअनंतर समयतें लगाय सिद्ध | नाम जानना । बहुरि जिनकों आचार्यपद भया होय ते संघविष रहो वा एकाकी आल्मध्यान | | करो वा एकाविहारी होहु वा आचार्यनिविय भी प्रधानताकों पाय गणधर पदवीके धारक होहु | | तिन सबनिका नाम आचार्य कहिये हैं । बहुरि पठनपाठन तो अन्यमुनि भी करै हैं परंतु जि
नकै आचार्यनिकरि उपाध्यायपद भया होय सो आत्मध्यानादिक कार्य करतें भी उपाध्याय ही | | नाम पावै हैं । बहुरि जे पदवीधारक नाही ते सर्व मुनि साधुसंज्ञाके धारक जानने । इहां ऐसा ।। नियम नाहीं है जो पंचाचारनिकरि आचार्यपद हो है, पठनपाठनकरि उपाध्यायपद हो है, मूल- | गुण साधनकरि साधुपद हो है । जातें ए तो क्रिया सर्व मुनिनिकै साधारण हैं परंतु शब्द नयकरि । तिनका अक्षरार्थ तैसें करिये है । साभिरूढनयकरि पदवीकी अपेक्षा ही आचार्यादिक नाम । जानने । जैसे शब्द नयकरि गमन करे सो गऊ कहिये, सो गमन तौ मनुष्यादिक भी करै हैं परंतु
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