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________________ मो.मा. प्रकाश FooH0000000-0080%loo%80/0010010010000050003cxookzcoopcoreogorooparoof0000-200-00-45CAKECHODHEGAO जो कदाचित् धर्मके लोभी अन्य जीवादिकनिकौं देखि रागअंशके उदयतें करुणाबुद्धि होय। तो तिनिकों धर्मोपदेश देते हैं । जे दीक्षाग्राहक हैं तिनकौं दीक्षा देते हैं । जे अपने दोष प्रगट | करैं हैं तिनकौं प्रायश्चित्त विधिकरि शुद्ध करै हैं । ऐसें प्राचार अचरावनवाले आचार्य, तिनकौं हमारा नमस्कार होहु । बहुरि जे बहुत जैनशास्त्रनिके ज्ञाता होय संघविषै पठन-पाठनके अधि| कारी भये हैं, बहुरि जे समस्त शास्त्रनिका प्रयोजनभूत अर्थ जानि एकाग्र होय अपने स्वरूपकौं । ध्यावे हैं । अर जो कदाचित् कषाय-अंश-उदयतें तहां उपयोगनाहीं भै है तौ तिन शास्त्रनिकों आप पढ़े हैं वा अन्य धर्मबुद्धीनिको पढ़ावै हैं । ऐसें समीपवर्ती भव्यनिको अध्ययन करावनहारे उपाध्याय तिनिकौं हमारा नमस्कार होहु । बहुरि इन दोय पदवीधारक बिना अन्य समस्त जे मुनिपदके धारक हैं बहुरि जे आत्मस्वभावकौं साधै हैं । जैसें अपना उपयोग परद्रव्यनिविषै | इष्ट अनिष्टपनौं मानि फँसें नाहीं वा भागै नाहीं तैसे उपयोगको सधावे हैं । बहुरि बाह्यताके साधनभूत तपश्चरण आदि क्रियानिविषै प्रवत्र्ते हैं वा कदाचित् भक्तिवंदनादि कार्यनिविर्षे प्रवत्त | हैं। ऐसे आत्मखभावके साधक साधु हैं तिनकों हमारा नमस्कार होहु । ऐसें इन अरहंतादि कनिका स्वरूप है सो बीतराग विज्ञानमय है। तिसहीकरिअरहंतादिक स्तुति योग्य महान भये " हैं तातें जीव तत्त्वकरि तौ सर्व जीव समान हैं परंतु रागादिक विकारनिकरि वा ज्ञानकी हीनता। करि जीव निंदा योग्य हो हैं । बहुरि रागादिककी हीनताकरि वा ज्ञानकी विशेषताकरि स्तुति
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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