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________________ वारणतरण सम्यक्तके २५ दोष। श्रावकाचार श्लोक-अनायतन मदाष्टं च, शंकादि अष्ट दूषनं । मलं संपूर्ण जानंतं, सेवनं दुःखदारुणं ॥ २९ ॥ अन्वयार्थ—(अनायतन ) छः अनायतन (च) और ( मदाष्टं ) आठ मद (शंकादि अष्टदूषनं ) शंका आदि * आठ दोष (संपूर्ण मलं) इनमें तीन मूढताको मिलाकर सर्व पचीस मल (जानंतं ) जानना चाहिये (सेवन) 2. इन पचीस मलोंका सेवना ( दारुणं दुःख ) भयानक दुःखोंका कारण है। विशेषार्थ-सम्यग्दृष्टीको सच्चे देव, शास्त्र, गुरुमें भक्ति रखते हुए सम्यक्तको मलीन करनेवाले . पचीस दोषोंको बचाना चाहिये । उनमें तीन मूढ़ता पहले कह चुके हैं। छ: अनायतन हैं वे धर्मके स्थान नहीं हैं। वे छः हैं-कुदेव, कुशास्त्र व कुगुरु और इन तीनोंके भक्त इन छहोंकी संगति-परिणामोंको सच्चे देव, शास्त्र, गुरुकी श्रद्धासे गिरानेवाली है। इसलिये श्रद्धाकी रक्षाके हेतु रागी, देषी देव तथा उनके भक्तोंकी संगति, भेषी साधु व उनके भक्तोंकी संगति, मिथ्यात्व पोषक शास्त्र व धर्माचरण व उनके कहनेवालोंकी संगति ऐसी नहीं करनी चाहिये जिससे लाचार होकर कुदेव, कुधर्म व कुगुरुकी भक्ति करनी पड़े। लौकिक व्यवहार मनुष्यताकी दृष्टिसे हरएक मानवसे रक्खा जासत्ता है। परंतु मिथ्याभाव पोषक व संसारवईक प्रवृत्तिमें सहयोग करना मिथ्याभावकी अनुमोदना करना है। इससे अपना भी बिगाड़ है व उनका भी बिगाड़ है । सत्यका अनुयायी स्वयं रहना चाहिये व सत्यकी ही अनुमोदना करनी चाहिये । इससे यह अभिप्राय नहीं है कि हम दूसरे धर्मवालोंसे प्रेमन रक्खे । साधारण प्रेम सर्व मानवोंसे रखते हुए जिन धार्मिक प्रवृत्तियोंके सहयोगसे आत्मकल्याण हो उनसे सहयोग करते हुए जिनसे विषय कषायकी पुष्टि हो व मिथ्यात्वमें व अन्यायमें प्रवृत्ति हो उनसे अलग रहते हुए मध्यस्थभाव रखना चाहिये। द्वेषभाव कभी भी किसीसे नहीं रखना चाहिये। आठ प्रकारका मदं करना भी सम्यक्तमें दोष है। वे आठ मद हैं। जैसा रत्नकरंडमें कहा है __ज्ञानं पूजां कुलं जाति बलमृदि तपो वपुः । अष्टावामित्य मानित्वं स्मयमाहुगतस्मयाः ॥ २६ ॥ KEEKEKARKELAKEEKEKe
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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