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________________ बाज्यस्तु प्रसवं आवभूषेमाचं विश्व भवानि सर्वतः। स नेमि राजा परियाति विद्वान् प्रजा पुष्टि वर्धयमानो। . . .:(अस्मेस्वाहा यजुर्वेद अध्याय मंत्र २५]. व्याख्या-(वाजस्य ) भावयज्ञ अर्थात् आत्मखरूपको (प्रसवः ) प्रगट करदेनेवाले ध्यानको (इमा ) इस (विश्व ) संसारके (भुवनानि) सर्वभूतजीवोंको (सर्वतः) सर्व प्रकारसे (श्रीवभूष) यथार्थरूप कथनकरके (स)जो (नेमि) श्रीनेमिनाथजी बाईसवें तीर्थकर (राजा) अपने फेवल ज्ञानादि आत्म चतुष्टयके खामी (च) और (विद्वान् ) सर्वश (परियाति) प्रगट करते हैं जिनके दयामय उपदेशसे (प्रजां ) जीवोंको (पुष्टि) अात्मस्वरूपकी पुष्टता (नु) शीघ्र (वर्धयमानी) बढ़तीहै (अस्मै) उस श्रीनेमिनाथजीको (स्वाहा) आहुति प्रदान हों। पातिकमासरं महावीरस्य नग्न रूपमुपासदामेतत्तिस्रो रात्री मुरासुता। [यजुर्वेद, श्रध्याय १६ मंत्र १४] व्याख्या-(आतिथ्यरूप) अतिथि स्वरूप पूज्य (माकर) महिना आदिके उपवास करनेवाले (महावीरस्य) कामादिक प्रबल शत्रुओंके जीतनेवाले वीर अर्थात् महावीर तीर्थंकर देवके (नग्नहुः) नग्न (रूपम् ) स्वरूपकी (उपासदाम् ) उपासना करो किससे ( एतत् )ये (तिस्रो)तीनों (रात्रोः) अज्ञान अर्थात् संशय विपर्यय और अनध्यवसाय और (सुराः) मद अर्थात् धनमद शरीरमद और विद्यामदकी (असुता) उत्पत्ति नहीं होती है।
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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