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________________ Reccccckerelerk ELECRELEGEGEGEGarekkerse विशेषार्थ-अहित भगवानके चार अघातीय कर्म, नाम, गोत्र, वेदनी. आयु शेष रहते हैं वे इन कर्माको नाश करके सर्व देहादिरहित मात्र शुद्ध आत्मा रूप रह जाते हैं। उनके आठ प्रसिद्ध श्रावसाचार गुण प्रगट होजाते हैं। सम्यग्दर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त वीर्य, अन्यायाध पना, सूक्ष्मत्व, अवगाइना. गुरुलधु । इमके सिवाय वचनातीत अनन्लगुण धारी सिद्ध है। कोई प्रकास्की पाधा जिनको नहीं होसकी है। जिनकी आत्मा प्रकाशमान होगई है। फिर कभी उनकी आत्मापर परदा नहीं आएगा। वे सदा ही शुद्ध रहेंगे। व आवागमन रहित सिद्धालयमें लोकके अग्रभागमें विराजमान रहेंगे। साधु महाराज ही ध्यानके बलसे ऐसे सिर पदको पासक्के हैं। श्लोक-परमेष्ठी शरणं कृत्वा, शुद्ध सम्यक्त धारिनः। ते नरा कर्म क्षपयंति, मुक्तिगामी न संशयः ॥१६॥ बन्धयार्थ—(परमेष्ठी शरणं कृत्वा ) जो पांच परमेष्ठीका शरण ग्रहण करके (शुद्ध सम्यक्त धाग्निः). शुर सम्यग्दर्शनके धारी हैं (ते नरा) वे मानव (कर्म क्षपयंति) काँका नाश करते हैं। (मुक्तिगामी न संशयः) व मोक्ष जानेवाले हैं इसमें संशय नहीं है। विशेषा-मोक्ष प्राप्तिका मुख्य मूल साधन यह है कि अति सिद्ध आचार्य उपाध्याय तथा साधु इन पांच परमेष्ठीकी भक्ति पूजा वंदना स्तुति व उनके गुणोंका मनन भलेप्रकार किया जावे तथा शुखात्माका पक्का रान करके शुर सम्पत प्राप्त किया जावे। शुद्ध सम्यक्त ही आस्मध्यानको बढानेवाला है और शनैः शनैः गुणस्थानोंके क्रमसे शुद्ध करता हुआ सिद्ध परमात्मा बना देता है, यह नि:संदेह है। लोक-त्रिविधि ग्रंथं च प्रोक्तं च, साथ ग्यानमयं ध्रुवं । धर्मार्थ काम मोक्षं च, प्राप्तं परमेष्ठिनं नमः ॥ ४६१ ॥ जन्ववा-(त्रिविषि ग्रंथं च प्रोक्तं च) तीन प्रकार ग्रंथ कहा गया है ( साथै ग्यानमयं ध्रुवं) शब्द रूप अर्थरूपवज्ञानमय सो ध्रुव है (धर्मार्थ काम मोक्षं त्र) धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थोकी सिरिका बतानेवाला(प्राप्तं परमेष्ठिन) व पांच परमेष्ठी पदको प्राप्त करानेवाला है (नमः) उसको नमस्कार हो। ॥५॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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