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________________ वारजवरण श्रावकाचार ॥४१॥ शील धर्मकी प्रभावना करनेवाला हो, पैराग्यमय वस्त्रोंका धारी हो, अल्पसे अल्प वन धारता हो वही ब्रह्मचर्य प्रतिमाका धारी श्रावक कहा जाता है। ____ श्लोक-आरंभे मन पसरस्य, दिष्ट अदिष्ट संजुते । निरोधनं च कृतं येन, शुद्ध भावं च संजुतं ॥ ४२६ ॥ अन्वयार्थ ((येन) जिसने (दिष्ट अदिष्ट संजुते आरंभे) देखे हुए व सुने हुए व संयोग प्राप्त आरभों में (मन पसरस्य निरोधनं च कृतं ) फंसे हुए मनको निरोध किया हो (शुद्ध भावं च संजुतं) तथा शुद्ध ७ भावोंका धारी हो वह आरम्भ त्याग प्रतिमा धारी प्रावक है। विशेषार्थ-अब यहां आठमी आरम्भ त्याग प्रतिमाको कहते हैं। यद्यपि अभी परिग्रहका त्यागी नहीं है तो भी अब यह अपने संयोगमें जो कुछ लौकिक आरम्भ करता था, व्यापार खेती लेनदेन, गृहारंभ आदि उन सबको त्याग करके संतोषी होजाता है। मनसे पैराग्यवान होकर देखे सुने व अनुभव किये हुए आरम्भों में भी मनको नहीं उलझाता है। पदि घरमें रहे तो एकांत में रहता है। अपने लिये कोई आरम्भ नहीं कराता है। जब भोजन के समय उसका कुटुम्बी पुत्र आदि कोई बुलाता है तष भोजन संतोषसे कर लेता है । वह स्वयं न बनाता है, न बनवाता है। दूसरे उमके कुटुम्बी उसकी आवश्यक्ताओंपर ध्यान रखकर उसको प्राशुक पानी आदि देते रहते हैं। यदि वह गृहत्यागी होता है तो दूसरे प्रावकगण उसकी सम्हाल रखते हैं। वह पहलेसे निमंत्रण तो मानता है परंतु मेरे लिये अमुक वस्तु बनाई जाय ऐसा जो सातमी प्रतिमा तक कह सका था सो अब नहीं कहता है। यदि कोई पूछे क्या त्याग है तो जिस किसी रस या वस्तुका त्याग होता है उसको बता देता है। संतोषसे जो मिले उसको अल्पाहार करके शरीर रक्षा करता है तथा निरंतर एकांतमें बैठकर शुद्ध भावोंके लिये सामाबिक, ध्यान, आध्यात्मिक ग्रंथोंका विचार व धर्म: ध्यान व धर्मोपदेश करता रहता है। परम वैराग्यवान हो आत्मीक उन्नतिका आरंभ करता रहता है। धर्म प्रभावनाका आरंभ करता है परंतु सांसारिक आरम्भसे पूर्णतया विरकहोजाता है। श्री रखकरंड श्रावकाचारमें इसका स्वरूप है सेवाकृषिवाणिज्यप्रमुखादारमतो व्युपारमति । प्राणातिपातहेतोर्योसावारंभविनिवृत्तः ॥१४॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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