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________________ वारणतरण विशेषार्थ-ब्रह्मचारी प्रावकको वैराग्यवान व आत्मानुभवी व निर्मल भावधारी होना योग्य है।अंतरंग व बहिरंग दोनों प्रकारसे ब्रह्मचर्य पालना योग्य है।अंतरंग ब्रह्मचर्य, आत्म समाधि व शुकाम रहित शील भाव तथा बहिरंग शुद्धि वचनोंसे व कायसे कुशीलकी चेष्टाका सर्वथा त्याग, राग वर्द्धक कथाओंको न कभी करता है और न कभी सुनता है। यदि कोई ब्रह्मचारी होकर भी शुर भाव न रक्खे, परिणामों में इंद्रिय विषयोंका राग रक्खै, राग सहित बात कहे, ॐ रागकी बातें सुने, जगतके प्रपंचोंमें अपनेको उलझावे, स्त्रियोंसे रागवर्डक वार्तालाप करे, एकांतमें स्त्रीका संगम करे, काम विकार होनेका निमित्त लावे, आत्माकी शुद्धिका ध्यान न रक्खे तो वह ब्रह्मचर्य प्रतिमाका खंडन करनेवाला होगया ऐसा समझना चाहिये। श्लोक-चित्तं निरोधितं येन, शुद्ध तत्वं च सार्थयं । तस्य ध्यानं स्थिरीभृतं, बंभ प्रतिमा स उच्यते ॥ ४२५ ॥ अन्वयार्थ (येन चित्तं सार्थय शुद्ध तत्वं निरोषितं ) जिसने मनको यथार्थ शुद्ध आत्म तत्वके भीतर रोका हो (तस्य ध्यान खिरीभ) व जिसका ध्यान स्थिर रहता हो उसीके (बभ प्रतिमा स उच्यते) ब्रह्मवर्ष प्रतिमा कही जाती है। विशेषा-सारांश यह है कि ब्रह्मचर्य प्रतिमामें अंतरंग शुद्धिकी मुख्यता है। अंतरंग परिणाम ४ यदिनिर्मल होंगे तो बाहरी क्रिया उसके विरुडनहीं होसकी है। वह ब्रह्म स्वरूप शुद्ध आत्मीक तत्वमें अपने मनको रोकनेका अभ्यास करके आत्मध्यानकी विशेष थिरता करता है। निरंतर जिसकी ली या लगन शुख आत्माके स्वात्मानन्दके पाने में लगी रहे व जो जगत मात्रकी आत्माओंको निश्चय नयके द्वारा समभावसे समान देखे, राग द्वेषका त्याग करे, सर्वका बंधुत्वभाव रक्खे, जिसको परमात्माका दर्शन हरएक संसारी प्राणीके भीतर शुद्ध नयके प्रतापसे होता हो, ब्रह्ममय जिसका भाव होरहा हो, ब्रह्मविचारमें ही जो रंजायमान हो, जिसकी वचन व कायकी चष्टासे भी ब्रह्मरस टपकता हो, जो पांच इंद्रियोंका विजयी होकर वैराग्यवान हो, रस नीरस जो आहार प्रासो बसमें संतोषी हो, अल्पाहारी हो, आरंभ पद्यपि कुछ करता है परंतु त्यागके सम्मुख हो, निरंतर मोक्षकी भावनामें वर्तता हो, प्राणी मात्रका हितैषी हो, परोपकारमें लीन हो, आत्मधर्म व ॥१॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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