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________________ वारणवरण १९५।। १ – विवाहिता व्यभिचारिणी स्त्री से हास्यादि व लेनदेन व्यवहार रखना - इत्वरिका परिभ्रहोता गमन है । ३-विना विवाही वेश्यादि व्यभिचारिणी स्त्रियोंसे हास्यादिसे लेनदेन रखना सो । इश्वरिका अपरिग्रहीता गमन है । ४ - काम सेवन के अंगोंको छोडकर अन्य अंगोंसे काम सेवन करना अनंग क्रीड़ा है । ५ – काम सेवनकी तीव्र लालसा रखनी कामतीत्राभिनिवेश है । परिग्रह प्रमाण अणुव्रत के पांच अतीचार १-क्षेत्र मकान – २ चांदी सोना, २ घन धान्य, ४ दासी दास, ५ कपड़े वर्तन, इन दो दोमें जो प्रमाण किया हो उनमें से एकके प्रमाणको घटाकर दूसरे के प्रमाणको बढा लेना ऐसे ५ अतिचार होंगे। दिग्विरतिके ५ अतीचार १ – ऊपरकी मर्यादाको भूलसे उलंघ जाना कई व्यतिक्रम है । १- नीचेकी मर्यादाको भूलले उलंघ जाना अधो व्यतिक्रम है । १-आठ दिशाओं की मर्यादाको उलंघ जाना तिर्यक् व्यतिक्रम है । ४- किसी तरफ क्षेत्रकी मर्यादाको बढाकर इसी तरफ घटा देना क्षेत्रवृद्धि है। ५- मर्यादाको याद न रखना, भ्रममें चले जाना स्मृतन्तराधान है। देशविरतिके ५ अतीबार १- मर्यादाके क्षेत्र से बाहर से मंगाना आनयन है । २- मर्यादासे बाहर भेजना प्रेष्य प्रयोग है । ३- मर्यादा से बाहर बात करना व शब्द भेजना शब्दानुपात है । ४ - मर्यादा से बाहर रूप दिखाकर काम निकालना रूपानुपात है । ५- मर्यादा से बाहर पुद्गल फेंककर काम निकालना पुद्गल क्षेप 1 अनर्थदंड विरतिके ५ अतीवार १- भांड वचन बोलना कंदर्प है। श्रावकाचार ॥१९६॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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