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________________ नारणतरण .... श्रावकाचार 1३५५॥ ७८ आचार्य परमेष्ठीके .... दशलक्षण धर्म उपाध्याय परमेष्ठीके .... ११ अंग १४ पूर्व साधुके.... ..... ..... मूल गुण २८ पांच परमेष्ठीके .... .... मुख्य खुण गृहस्थको उचित है कि इन गुणोंको चितवन करता हुआ ॐ के द्वारा पांच परमेष्ठीका मनन करे । सम्यग्दृष्टी गृहस्थके भीतर नीचे लिखे ७५ गुण होने चाहिये२५ मल दोष रहित पना २५ गुण ८ संवेगादि-अर्थात् १संवेग या धर्मानुराग, २ निर्वेद-संसार शरीर भोगोंसे वैराग्य, ३ गाँ-अपने मनमें अपनी बुराई, ४ निन्दा-दूसरोंसे अपनी बुराई, ५ उपशम या शांत भाव, ६ भक्ति-अर्हतादिकी भक्ति, ७ वात्सल्य-धर्मात्माओंसे प्रेम, ८ अनुकम्पा-दु:खिघोंपर दया । ८गुण अतीचार न लगाना-१शंका, २ कांक्षा, ३ विचिकित्सा, ४ अन्यदृष्टि प्रशंसा, ५ अन्यदृष्टि संस्तव ५ गुण ७ भय रखना- इस लोक, परलोक, ३ रोग, ४ अनरक्षा, ५ अगुप्ति, ६मरण,७ अकस्मात् ३ शल्य छोडना-माया, मिथ्या, निदान ८ मूलगुण-३ मकार, पांच उदम्बरका त्याग ७ व्यसन-यूतादिका त्याग १२ ब्रतोंका अभ्यास-पांच अणुव्रत, तीन गुणवत, चार शिक्षा व्रत ७५ गुण यदि यहां अन्य तरहसे ७५ गुणोंका प्रयोजन हो तो विद्वान विचार लेवें । गृहस्थी सम्यग्दृष्टी उन गुणोंकी पूजा भकि आदर मनन करता हुआ शुद्ध निश्चल आत्माका अनुभव अवश्य करता रहता है क्योंकि वही साक्षात् मोक्षमार्ग है। : :
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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