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करमवरण
४३२२॥
मे
९- अनुत्तरोपपादिक दशांग - इसमें हरएक तीर्थंकर के समय में दश मुनि उपसर्ग सह समाधिमरण कर विजयादिक अनुत्तरोंमें जन्मे उनका कथन है। श्री वर्डमानस्वामीके समय ऐसे १० मुनि १ ऋजुदास, २ धन्व, ३ सुनक्षत्र, ४ कार्तिकेय, ५ नंद, ६ नंदन, 9 सालिभद्र, ८ अभय, ९ वारिषेण, १० चिलाती पुत्र ये दश भए ।
१०- प्रश्न व्याकरणांग—इसमें अतीत अनागत वर्तमान काल सम्बन्धी लाभ अलाभ आदि के उत्तर कहने की विधि तथा चार प्रकार कथाओंका वर्णन है ।
आक्षेपिणी - धर्म में दृढ करनेवाली, विक्षेपणी, एकांत मत खंडनेवाली संवेजिनी-धर्मानुराग करानेवाली निर्देजिनी-संसार शरीर भोगोंसे वैराग्य करानेवाली ।
११- विपाकसूत्र - कर्मके उदय बंध सत्ता आदिका जिसमें वर्णन है ।
१२- दृष्टिप्रवाद - इसके पांच अधिकार हैं । १- परिकर्म, २-सूत्र, ३- प्रथमानुयोग, ४- पूर्वगत ५- चूलिका । परिकर्म वह है जिसमें गणितादिके सूत्र हो । उसके पांच भेद हैं । चन्द्र प्रज्ञप्ति, सूर्य प्रज्ञप्ति, जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति, द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, व्याख्या प्रज्ञप्ति । इसमें जीवादि पदार्थोंका स्वरूप है ।
सूत्र उसे कहते हैं जिसमें क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद, विनयवाद मतोंके १६३ भेदका वर्णन हो । प्रथमानुयोग में श्रेशठ सलाका पुरुषोंका जीवनचरित्र हो ।
चौदह पूर्व हैं वे इसप्रकार हैं
१- उत्पाद पूर्व-पदार्थोंका उत्पाद व्यय ध्रौव्य कथन है ।
२- अग्रायणीय पूर्व–७०० सुनय, कुनय व सात तत्वादिका वर्णन है ।
३- वीर्यानुवाद पूर्व - जिसमें जीव अजीवादिके धीर्यका व क्षेत्र, काल, भाव व तपके वीर्यादिका कथन है ।
४- अस्तिनास्ति पूर्व-अस्ति नास्ति आदि सात भंगों का स्वरूप है।
५-ज्ञान प्रवाद पूर्व-आठ प्रकार के ज्ञानका स्वरूप ।
६ - सत्य प्रवाद पूर्व - १० प्रकार सत्य आदिका वर्णन I
७ - आत्म प्रवाद पूर्व-- आत्मा के स्वरूपका कथन है ।
श्रावकाचार
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