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धारणसरण
॥२९॥
समें संतोषपूर्वक शुद्ध भोजन करना श्रावकके आत्मध्यानमें सहायक होगा, व उसके अहिंसा व्रतको ४
श्रावधर दृढ करेगा। रात्रिको वह भोजन सम्बन्धी आरंभसे विरक्त हो, खानपानकी चर्चासे अलग हो अपना समय धर्मध्यानमें देसकेगा।जो आत्मज्ञानी होगा उसीके सच्चा रात्रिभोजन त्याग व्रत होगा।
पानी छानना। श्लोक-पानी गालितं येनापि, अहिंसा चित्त शंकए ।
विलछितं शुद्ध भावेन, फासू जल निरोधनं ॥ ३०४॥ अन्वयार्थ (येनापि पानी गालित) जिस किसीने भी पानीको छाननेकी विधि की वह वही श्रावक होगा (अहिंसा चित्त शंकर) जिसके चित्तमें अहिंसाके पालनेका भय होगा वह (शुद्ध भावेन विलाछनं) गुड भावसे विलछन पहुंचावेगा तथा (फासू जल निरोधन) प्राशुक जलको बंद रक्खेगा-ढका रक्खेगा।
विशेषार्थ-अब श्रावककी त्रेपन क्रियाओं में जो पानी छाननेकी आज्ञा है उसपर ग्रंथकर्ताने प्रकाश डाला है कि पानी छाननकी विधि वही करेगा जो अहिंसावत भलेप्रकार पालनेका उद्योगी होगा व स्थावर व प्रसकी हिंसासे भयभीत होगा। विना छना पानी काममें लेनेसे अनगि. नती ब्रस जंतुओंका घात होता है। दयावान गृहस्थ गादेके दोहरे छन्नेसे कूप, वावडी, नदी आदिका पानी सम्हाखकर छानेगा, एक वर्तनसे दसरे वर्तनमें छानेगा । छन्ना इतना बडा होना चाहिये कि दोहरा करनेपर वर्तनके मुखसे तीनगुणा चौडा हो ताकि विना छना पानी वर्तनमें न आवे । पानी छानकर उसका विलपन या जीवानी वहीं समहालकर पहुंचा देनी चाहिये जहांसे पानी भरा गया हो । पना पानी दो घडी या ४८ मिनटसे अधिक नहीं चल सका है इसलिये पुनः पुनः छाननेकी जरूरत पडेगी। उचित है कि सब विलपन एक वर्तनमें एकत्र कर लिया जावे । जष फिर पानी भरनेको जावे तब उसी वर्तन में रखकर वर्तनको कूपमें डाल दे। नदी व सरोवरमें तो तुर्त छने पानीको धारसे उन्मेको घोदेना चाहिये । इस छने पानीको सदा ढका हुआ रखना चाहिये, जिससे कोई जंतु उसमें पडे नहीं। ४८ मिनट वीतनेपर फिर छानकर वर्तना चाहिये । यदि प्राशक करना हो तो लवंग, कसायला द्रव्य, निमक, मिरच आदि कोई पदार्थ कूट करके ऐसा मिलाया जावे
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