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________________ ॥२६॥ ७ सम्यक्तभाव निर्मल होता है। वह शुद्धात्माको पहचानता है तथा शुरात्माका अनुभव करता है। श्रावकार ४ यह तीसरा पात्र भी मोक्षमार्गी है व दान देने योग्य है। श्लोक-शुद्धदृष्टि च सम्पूर्ण, मलमुक्कं शुद्ध भावना। मति कमलासने कंठे, कुज्ञानं त्रिविधि मुक्तयं ॥ २६५ ॥ अन्वयार्थ (सम्पूर्ण शुद्धष्टी च) यह अविरत सम्बग्दष्ट पूर्ण शुद्ध आत्माका श्रद्धावान होता है र (मलमुक्त ) अतीचार रहित होता है (शुद्ध भावना) शुद्ध आत्माकी भावना करता रहता है (कण्ठे कमलासन ) कण्ठमें कमलको विराजमान करके (मति) बुद्धि स्वरूप ॐको ध्याता है (त्रिविधि कुज्ञानं मुक्तयं) तीन कुज्ञान रहित होता है। विशेषार्थ-यह जघन्य पात्र शुद्धात्मापर पूर्ण विश्वास रखता हुआ उसी शुद्ध आत्माके स्वरूपकी भावना भाता है। अपने कण्ठमें कमल विराजमान करके उसमें ॐ स्थापित करके ॐके द्वारा परमात्माका ध्यान करता है। इसके कुमति, कुश्रुत, कुअवाधिज्ञान नहीं होते हैं । यह पांच अतीचारोंको बचाकर निर्मल सम्यक्त पालता है। वे पांच अतीचार हैं-शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, अन्यदृष्टिप्रशंसा, अभ्यदृष्टिसंस्तव । शंका-जिनधर्मके प्रयोजनभूत सात तत्वोंमें दृढ़ श्रद्धा रखता हुआ उनमें शंका नहीं लाता है । यदि शास्त्रोंमें कही हुई कोई बात समझ में नहीं आती है तो अपनी समझकी कमी समझता है व विशेष ज्ञानियोंसे समझनेकी चेष्टा करता है। उसके ऊपर मिथ्या श्रद्धा नहीं रखता है। तथा वह सात प्रकारका भय नहीं रखता है। इसलोक भय-ये जगतके लोग मेरा बिगाड़ करेंगे व मुझे इंसेगे, २-परलोक भय-परलोकमें बुरी गतिमें जाऊंगा तो क्या होगा, -रोग भय-रोग होजायगा तो मैं क्या करूंगा, ४-अनरक्षा भय-मेरा कोई रक्षक नहीं है, कैसे मेरे प्राण बचेंगे,५-अगुप्त भयV मेरा माल कोई चुरा लेगा तो मैं क्या करूंगा। ६-मरण भय-यदि मर जाऊंगा तो सब कुछ छूट जायगा इससे न मरूं तो ठीक, ७-अकस्मात् भय-कहीं मकान न गिर पड़े, भूचाल न आजावे, ऐसा । होगा तो क्या करूंगा। इस तरह सात तरहका भय सम्यक्ती नहीं रखता है। यथायोग्य हर RKeketreeke ॥३६५॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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