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________________ ॥२०७॥ भलेप्रकार पालनेको समर्थ होजाऊँ। उन पैंतीसमें बारह व्रत, बारह तप तथा ग्यारह प्रतिमाएँ हैं। इनको छोडकर शेष अठारह क्रियाओंको शक्तिके अनुसार पालता है। श्रावकाचार ऐसा सम्यक्ती जीव सर्व लौकिक कामोंको कर सकता है, गरीब-अमीर सब कोई ऐसा जैनधर्म पाल सक्ता है। असि (सिपाहीका काम), मासि (लिखनेका काम), कृषी, वाणिज्य, शिल्पकर्म, विद्याकर्म (गाना बजानादि) इन छ: कामें से अपनी स्थितिके अनुसार हरएक जैनी आजीवि. काका उद्यम भलेप्रकार करता रहकर सच्चा जनी रह सक्ता है। वह देशकी रक्षा कर सका है। दृष्टोंका दमन कर सकता है, प्रचुर अन्न खेतीसे पैदा कर सकता है, देश परदेश भ्रमण करके व्यापार कर सकता है। नानाप्रकार कारीगरी, लकडी, कपडा, लोहा, पत्थर आदिके काम कर सकता है, मकान बना सक्ता है, चित्रकला, गाना, बजाना आदि काम कर सक्ता है। बुद्धि कम होनेपर नाना प्रकार सेवा कार्य कर सका है। जिस क्षेत्रमें सर्व ही मानव जैनी होजावें उस क्षेत्रमें सारा काम जो गृहस्थियोंके लिये आवश्यक है करते हुए भी जैनधर्मका पालन होसक्ता है। जैनधर्म परिणामोंके आधीन है। बाहरी चारित्र अविरत सम्यक्ती यथासंभव ही पालता है। ___श्लोक-आज्ञा सम्यक्त संयुक्तं भावं वेदक उपसमं । क्षायिकं शुद्ध भावस्य, सम्यक्तं शुद्धं ध्रुवं ॥ २०२ ॥ अन्वयार्थ (भाज्ञा सम्यक्त संयुक्तं भावं) श्री जिनेन्द्र भगवानकी आज्ञानुसार तत्वोंका श्रद्धानरूप जो भाव है वही (वेदक ) वेदक सम्यक्त है व (उपसमं) उपशम सम्यक्त है वही (क्षायिक) क्षायिक V सम्यक्त है। यह क्षायिक (शुद्ध भावस्य शुद्धं ध्रुवं सम्यक्तं ) शुद्ध आत्मीक तत्वका शुद्ध निश्चल अमिट ४ श्रद्धान है। विशेषार्थ-जिन शास्त्रों में छः द्रव्य सात तत्वोंका जो स्वरूप कथन किया गया है उसको भलेप्रकार समझकर जिसने श्रद्धान कर लिया है वही आज्ञा सम्यक्त है । इस करके सहित जिसका भेद भावज्ञानसे पूर्ण होता हुआ अपने आत्माको रागादि भाव कर्म, ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म व रागद्वेषादि भावकोंसे भिन्न अनुभव करता है वही भाव सम्यक्त है इसीके तीन भेद है-उपशम, वेदक, क्षायिक। मिथ्यादृष्टी जीवको चार अनंतानुबंधी कषाय और मिथ्यात्व प्रकृति अथवा मिथ्यात्व, सम्पर , सम्बर २०७॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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