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________________ तारणतरण +H ॥२०॥ IN.. शुद्धतत्वं च आराध्यं, मुक्तिगमनं न संशयः॥ १९४ ॥ ४श्रावास अन्वयार्थ (यस्य हृदये ) जिसके हृदय में (सम्यक्त) सम्यग्दर्शन है तथा वह (व्रत तप क्रिया संयुतं) बत, तप, क्रिया सहित है (च) और (शुद्ध तत्वं आराध्यं) शुद्ध आत्मीक तत्वका आराधन करता है तो वह (मुक्तिगमनं) मुक्ति अवश्य पायगा (न संशयः ) इसमें कोई संशय नहीं है। विशेषार्थ-सम्यग्दर्शनके समान कोई उपकारी नहीं है। जो श्रावक तथा मुनिके चारित्रको सम्यग्दर्शन सहित यथायोग्य पालेगा और निरंतर जिसका उद्योग आत्मध्यानकी तरफ रहेगा अर्थात् जो आत्मानुभवके ही लिये योग्य निमित्तोंको मिलाने के लिये व अयोग्य निमित्तोंके हटानेके लिये व्यवहार चारित्र पालेगा वह महात्मा यदि काललब्धि हुई व शरीर संहनन योग्य हुआ तो उसी जन्मसे निर्वाण लाभ करेगा। अन्यथा दो चार दश भवके भीतर मोक्ष चला जायगा। सम्यग्दर्शन वास्तवमें खेवटिया है। जैसा रत्नकरण्ड श्रावकाचारमें कहा है दर्शनं ज्ञानचारित्रात्साधिमानमुपाश्नुते । दर्शन कर्णधारं तन्मोक्षमार्गे प्रचक्षते ॥१॥ भावार्थ-मोक्षके मार्गमें सम्यग्दर्शनको खेवटिया कहा जाता है। ज्ञान चारित्रकेद्वारा सम्यग्दर्शनकी उपासना की जाती है अर्थात् शुद्ध आत्मीक अनुभव किया जाता है। सारसमुच्चयमें कहते हैं अतीतेनापिकालेन यन्न प्राप्तं कदाचन । तदिदानीं त्वया प्राप्तं सम्यग्दर्शनमुत्तमम् ॥ ४६॥ भावार्थ-गत काल में जिसको कभी नहीं पाया था ऐसा उत्तम सम्यग्दर्शन अब प्राप्त हुआ है। ४ यह बड़ा ही दुर्लभ लाभ है । इसलिये इसकी रक्षा करके इसके सहारे संसार-सागरसे पार हो ४ जाना चाहिये। सम्यग्दृष्टीका आचरण। श्लोक-लिङ्गं च जिनं प्रोक्तं, त्रितय लिङ्गं जिनागमे । उत्तम मध्यम जघन्यं च, क्रियात्रेपण संयुतं ॥ १७५ ॥ ॥2.00
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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