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________________ तारणतरण 1126311 →✈✈✈✈ उस धर्म ध्यानके अनेक उपाय है। एक उपाय यह है कि एक कमल हृदयस्थान में छः पत्तोंका विचारा जावे। और उसके हरएक पत्तेपर क्रमशः - ॐ हाँ, ही, हू, हौं, हाँ, स्थापित करके अथवा अरहंत सिद्ध इन छः अक्षरोंको विराजमान करके इन मंत्र पदोंके द्वारा शुद्धात्माका ध्यान किया जावे अथवा तीन पत्रका कमल विचार करके हरएक पत्तेपर ॐ सम्यग्दर्शनाय नमः, ज्ञानाय नमः, ॐ सम्यञ्चारित्राय नमः, ऐसे तीन पद रखकर इनके द्वारा ध्यान करें । इस श्लोक का जो भाव समझमें आया सो लिखा गया है, विशेष ज्ञानी अधिक विचार कर लेवें । सम्प श्लोक - धर्म अप्पसद्भावं मिथ्या माया निकन्दनं । می शुद्ध तत्वं च आराध्यं, ह्रींकारं ज्ञानमयं ध्रुवं ॥ १७६ ॥ अन्वयार्थ - ( धर्मं ) धर्म (अप्प सद्भावं ) आत्माका यथार्थ स्वभाव है ( मिथ्या माया निकन्दनं ) जहां न मिथ्यात्व है न मायाचार है (शुद्ध तत्वं च आराध्यं) जहां शुद्ध आत्मीक तत्वकी आराधना है व (ह्रींकारं) जहां ह्रींका ध्यान है जिस होंमें (ध्रुवं ) अविनाशी ( ज्ञानमयं ) ज्ञानमई तत्व स्थापित है । विशेषार्थ — हरएक आत्माका अपना जो यथार्थ द्रव्यका स्वभाव है वही धर्म है । अर्थात् यह आत्मा स्वभावसे शुद्ध सहज ज्ञान दर्शन सुख वीर्यमई अविनाशी अमूर्तक कर्म कलंक से रहित परम निर्मल है। इसी शुद्ध स्वभावका श्रद्धान सम्यग्दर्शन है । इसीका ज्ञान सम्यग्ज्ञान है व इसीका आचरण सम्यक् चारित्र है, यही यथार्थ धर्म है, इसपर लक्ष्य रखते हुए जिस उपायसे इसका ध्यान हो सके वह सब उपाय भी कर्तव्य हैं । उसीको धर्मध्यान कहते हैं । इस शुद्ध आत्मस्वभावमई धर्म में मिथ्यात्वका व मायाचारका नाम नहीं है। जहां अभिप्राय संसार सम्बन्धो रागद्वेष हो, विषय कषायकी पुष्टि हो, शुद्ध आत्मानन्द के लाभ के सिवाय अन्य कोई स्वर्गादिक सुखका पाना हो वहीं मिथ्यात्वको गन्ध कही जाती है, अथवा जहां कोई मायाचार ही हो, मात्र किसी लौकिक प्रयोजनके लिये दूसरोंपर असर डालने के लिये, धर्मका आचरण भी पाला जाता हो व धर्मध्यानका अभ्यास किया जाता हो, वह भी सच्चा धर्म नहीं है । धर्म वहीं है जहां आराधन करने योग्य एक शुद्ध आत्मीक तत्व हो । लक्ष्य बिंदू यही हो । इसी लक्ष्यको रखकर व्रत, उपवास, जप, तप, ध्यान, धारणा, समाधि आदिका साधन किया जाता हो । धर्मध्यानके उपय श्रावकाचार ॥ १८३॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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