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________________ १४॥ ५ है ऐसी कथाओंको व्याख्यान करनेवाले शास्त्रोंका रचना, उनका कहना सुनना व अन्य कोई भी शास्त्र हो, उसके वर्णनको इस तरह कहना कि जिसके सुननेसे काम भाव उत्पन्न होजावे विका ॐश्रावकार रूप है। जैसे किसी जैन पुराणमें कहीं स्त्रियोंके शृंगारका वर्णन है उस वर्णनको आचार्यने पुण्यका फल या उसकी क्षणभंगुरता दिखाने के लिये किया है उस वर्णनको कोई व्याख्याता इस रूपमें कहें कि जिससे श्रोताओंका मन कामभावमें लिप्त होजावे, वह विकथाहीमें आजायगा। जहां ऐसा कथन आवे वहां वक्ताको इस तरह उसको समझाना चाहिये, जिससे रागके स्थान में वैराग्य होजावे, बडे १ काव्य, नाटक, छन्द, अलंकार व कविताएं ऐसी बनाई जाती हैं जिनमें बडी भारी विद्वत्ता है, परन्तु कामभावकी उत्तेजक हैं वे सब ग्रन्थ कुज्ञानमय शास्त्र हैं। वे मूढतासे भरपूर हैं। ऐसे शास्त्रोके रचने, कहने व सुनने से स्त्रियों में अनुराग बढ जाता है, परस्त्री व वेश्याकी चाहना उठ आती है। परिणामों में परस्त्रीकी तरफ आसक्ति आनेसे ब्रह्मचर्य व्रतका खण्डन होजाता है। अतएव ब्रह्मचर्यकी रक्षाके लिये स्त्रियोंकी विकथाओंसे बचना हितकर है। __श्लोक-परिणामं यस्य विचलंते, विभ्रमं रूप चिंतनं । आलापं श्रुत आनन्दं, विकहा परदारसेवनं ।। १४०॥ अन्वयार्थ-(यस्य) जिस विकथाके करनेसे (परिणाम) भाव (विचलंते) डगमगा जाते हैं (विभ्रम) स्त्रियोंके विलास (रूप) व उनके रूप देखनेकी (चिंतनं) चिंता उत्पन्न होजाती है। (आलापं श्रूत आनन्द) कामभावके गीत व वार्तालाप सुनने में आनन्द भाव जागृत होजाता है इसीलिये (विकहा ) स्त्री कथा करना (परदारसेवनं ) परस्त्री सेवनमें गर्मित है। विशेषार्थ-स्त्रियोंकी कथा जबतक कुकथा रूपमें की जायगी, उसके सुनते सुनते कहते कहते परिणाम शद्ध ब्रह्मचर्यके भावसे डिगमगा जायगे। भावों में विकार तो हो ही जायगा। तथा यह चिंता होजायगी कि हम स्त्रियोंके रूप देखा करें, उनके वस्त्राभूषण, चलने, फिरने, नाचने, गानेके विलास १. देखा करें, उनके मनोहर गान सुना करें, उनके साथ वार्तालाप किया करें। इस चिंताके साथ उसको परस्त्रियों या वेश्याओं के साथ वार्तालाप करनेमें व उनके मनोहर शब्द सुनने में अति रंजायमान* पना होजायगा। यदि कोई परस्त्री भोग नहीं भी करे तो भी यह सब मनकी व वचनकी व कायकी wall W
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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