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________________ वारणवरण ॥१०८॥ अन्वयार्थ – (चौरस्य भावना ) चोरी करनेकी भावना (आरति रौद्र संयुतं ) अंर्त तथा ध्यान सहित (दिष्टा ) चोर कथाके कारण दिखलाई पड़ती है । (स्तेयानंद) सो चौर्यानंद रौद्रध्यान में (आनंद) आनन्द मानना (संसारे) संसार में (दुःखदारुणं ) भयानक दुःखोंका देनेवाला है । विशेषार्थ —चोरोंकी विकथासे सुनने पढ़नेवालोंके मनमें चोरी करनेकी भावना इस कारण हो उठती है कि चोरी करनेसे जब प्रचुर धनका लाभ होना तथा उस धनसे अन्यायके विषय भोग करना सुनाई देता है तब अज्ञानीके मनमें यह भाव पैदा होजाता है कि हम भी चोरी करके धन संग्रह करें और मनमाने विषयभोग करें तो बहुत अच्छा है । इस भावका फल यह होता है कि वह निदान नामके आर्तध्यान में तथा हिंसानंदी, मृषानंदी, चौर्यानंदी, परिग्रहानंदी चारों ही रौद्रयानों में उलझ जाता है । जब ऐसी भावना दृढ होजाती है तब चोरी करनेमें प्रयत्न भी हो जाता है । इस तरह घोर पाप कमाकर संसार में घोर दुःखोंको उठाता है। चोरी करना, कराना व उसकी अनुमोदना तीनों ही हिंसा के पापमें गर्भित हैं क्योंकि परको पीडा पहुंचानेका विचार होता है इसलिये ऐसी विकथा न कभी करनी चाहिये और न कभी सुननी चाहिये । श्लोक-चोरीकृतं व्रतधारेन, जिनउक्तं पद लोपनं । अशाश्वतं अनृतं प्रोक्तं, धर्मरत्न विलोपितं ॥ १०६ ॥ अन्वयार्थ - ( व्रतधारेन ) व्रतोंको धारते हुए ( चोरीकृतं ) जो चोरी की जाये वह (जिन उके पद ) जिनेन्द्र के कहे हुए वचनोंका (लोपनं ) लोप करना उसका ऐसा करना ( अशाश्वतं ) सनातन नहीं है (अनृतं) मिथ्या है ऐसा (प्रोक्तं ) कहा गया है, ( धर्मरत्नं ) धर्मरूपी रत्नको (विलोपित) चुराना है । विशेषार्थं—यहांपर उन लोगोंको लक्ष्य में लेकर कहा गया है जो शास्त्रकी आज्ञाको लोपकर शास्त्रानुसार व्रतों का नियम न लेकर मनमानी क्रिया पालते हैं तथा शास्त्राज्ञाको लोपकर शास्त्र के विरुद्ध आचरण करते हैं तौभी अपनेको श्रावक व्रती या साधु महाव्रती कहते हैं । यह भी चोरी ही है। क्योंकि जिनेन्द्र के कहे हुए वचनों को छिपाया जाता है। यह महान झूठ है तथा यह सनातनके मार्ग से विपरीत । जिस धर्मरत्न से आत्मकल्याण होता उसको इसने चुरा लिया, छिपा श्रावकाचार ॥१०८॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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