SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 782
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संवेगरंगसाला | सिद्धिसुखस्य सर्वसुखेभ्यः उत्तमत्वम् । ।७४४॥ था। कप्पोवगा सुरा जं, अच्छरसहिया सुहं अणुभवंति । तत्तो अणंतगुणियं, सोकखं लवसत्तमसुराणं ॥९७०३॥ | केइ वि मज्झिमलेसा, चरित्ततवनाणदंसणगुणा य । वेमाणियदेविदा, भवंति सामाणियसुरा वि ॥९७०४॥ सुयभत्तीए समग्गा, उग्गतवा नियमजोगसंसुद्धा । लोगंतिया सुरवरा, हवंति आराया धीरा ॥९७०५॥ जावइयाउ रिद्धीओ, होंति इंदियगयाणि य सुहाणि । फुडमाऽऽगमेसिभद्दा, लभंति आराया ताई ॥९७०६॥ जे वि हु जहन्नियं तेओ-लेसियाऽऽराहणं पवजंति । ते वि जहन्नेणं चिय, लभंति सोहम्मदेविड्ढि ॥९७०७॥ भोए अणुत्तरे भुंजि-ऊण तत्तो चुया सुमाणुस्से । इड्ढिमऽउलं चइत्ता, चरंति जिणदेसिय धम्म ॥९७०८॥ सइमंता धीमंता, सद्धासंवेगवीरिओवगया। जित्ता परीसहचमुं, उवसग्गरिउ अभिभवित्ता ॥९७०९॥ सुक्कं लेसमुवगया, सुक्कज्झाणेण खवियसंसारा । उम्मुक्ककम्मकवया, उति सिद्धिं धुयकिलेसा ॥९७१०॥ /जेण जहन्नेणाऽवि हु, काऊणाऽऽराहणं धुयकिलेसा। सत्तट्ठभवाणऽभ-तरम्मि पाविति परमपय ॥९७११॥ सव्वन्नू सव्वदरिसी, निरुवमसुहसंगया य तें तत्थ । जम्माऽऽइदोसरहिया, चिट्ठति सया वि भगवंतो ॥९७१२॥ | नारयतिरिएसु दुई, किंचि सुहं होइ तह य मणुएसु। देवेसु किचि दुक्ख', मोक्खे पुण सव्वहा सोक्ख ॥९७१३॥ तथा ||७४४॥ रागाऽईणमभावा, जम्माऽऽईणं असंभवाओ य । अव्वाबाहाओ खलु, सासयसोक्ख खु सिद्धाणं रागो दोसो मोहो, दोसाऽभिस्संगमाऽऽइलिंग त्ति । अइसंकिलेस वा, हेऊ चिय संकिलेसस्स ॥९७१४॥ ॥९७१५॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy