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________________ संवेग रंगसाला फलद्वारस्वरूपम् । ॥७४३॥ जह तंदुलस्स कुंडय-सोही सतुसस्स तीरइ न काउ'। तह जीवस्स न सका, लेसासोही ससंगस्स ॥९६८९।। उकोसाऽऽइठाणेसु, सुद्धलेसाण वट्टमाणो सो। कालं करेज जइ ता, तारिसमाऽऽराहणं लहइ ॥९६९०।। ता लेसासुद्धीए, जत्तो नियमेण होइ कायव्यो। जल्लेसो मरइ जिओ, तल्लेसेसु तु उववज्जे ॥९६९॥ लेसाईयं तु गतो, परिणाम नाणदंसणसमग्गो। अक्खयसोकखसमिद्धि, पावइ सिद्धिं धुयकिलेसो ॥९६९२।। इय समयसिधुवेलोवमाए, संवेगरंगसालाए । चउमूलद्दाराए, सोग्गइगमपउणपयवीए ॥९६९३॥ आराहणाए पडिदार-नवगमइए समाहिलाभम्मि । भणियं चउत्थदारे, लेसा सत्तमपडिदारं ॥९६९४॥ लेसाविसुद्धिमाऽरोहिऊण, आराहणं खमगसाहू । जं पाउणइ तमेतो, फलदारेणं निदंसेमि ॥९६९५॥ आराहगो य तिविहो, उक्कोसो मज्झिमो जहनो य । लेसादारेण फुडं, वोच्छामि विसेसमेयस्स ॥९६९६॥ सुक्काए लेसाए, उकोसगमंऽसगं परिणमेना। जो मरइ सो हु नियमा, उकोसाऽराहगो होइ ॥९६९७।। जे सेसा सुक्काए, अंसा जे आवि पम्हलेसाए । ते पुण जो सो भणिओ, मज्झिमओ वीयरागेहिं ॥९६९८॥ तेउलेस्साए जे, अंसा अह ते उ जो परिणमित्ता। मरइ तओ वि हु नेओ, जहन्नाराहगो एत्थ ॥९६९९॥ एसो पुण सम्मत्ताइ-संगओ चेव होइ विन्नेओ। न हुलेसामित्तेणं, तं जमऽभव्वाण वि सुराणं ॥९७००॥ एवं च केइ उकोस-गाए आराहणाए नीसेसे । खविऊणं कम्मंसे, सिद्धि गच्छति विहुयरया ॥९७०१॥ अह मज्झिममाऽऽराहण-माऽऽराहिय साऽवसेसकम्मंसा । सुविसुद्धसुकलेसा, भवंति लवसत्तमा देवा ॥९७०२॥ ॥७४३॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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