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संवेगरंगसाला
रत्नविक्रयेण ध्वजऊर्चीकरणम् ।
॥६७८॥
अह तत्थ पुरे एगत्थ, ऊसवे जत्तियाउ कोडीउ । अत्थस्स जस्स तेणं, इब्मेणं तेत्तियधयाओ ॥८८२६॥ उब्भवियाओ नियनिय-धवलहरऽग्गेसु ससहरसियाओ। ताओ य पलोइत्ता, भणिओ पुत्तेहिं सो सेट्ठी ॥८८२७।। विक्किणसु ताय ! रयणाई, कुणेसु अत्थं इमेहिं कि कन्ज। कोडिज्झएहि गेहं, अम्हं पि हु सोहमुव्वहउ ॥८८२८॥ रुद्वेण सेट्टिणा जं-पियं तओ रे! पुणो वि मा एवं । भासेजह मह पुरओ, इमाई न कहं पि विकेमि ॥८८२९॥ एवमुवलद्धतन्नि-च्छएहि पुत्तेहि मोणमह विहियं । सेट्ठी वि कज्जवसओ, वीसत्थमणो गओ गामं ॥८८३०॥ पुत्तेहि वि विजणं जाणिऊण, अविमरिसियनकज्जेहिं । दूदिसाऽऽगयवणियाण, ताणि रयणाणि दिनाणि ॥८८३१॥ तविक्कयपत्तपभूयदव्व-कोडिअणुरूवसंखाए । संखधवलाउ गेहे, उन्भविया उ धयवडा तो ॥८८३२॥ केवइकालाउ आगयो य, सेट्ठी पलोइउ गेहं । विम्हइयमणो सहसा, पुच्छइ पुत्ते किमेयं ति ॥८८३३॥ सिट्ठो य तेहिं सव्वो, वुत्वंतो तो ददं परुटेणं । निठुरगिराहि सुचिरं, निब्भच्छिता अतुच्छाहिं ॥८८३४॥ ताणि रयणाणि घेत्तुं, एजह मे मंदिरम्मि इइ भणिउ' । कंठे हठेण धरि, निच्छुढा निययगेहाओ ॥८८३५॥ कह ते पुणो वरागा, दूरदिसोवगयवणियपासाओ। निययस्यणाणि पावेंति, नूणं सुचिरं भमंता वि ॥८८३६॥ अह्वा लभंति ते वि हु, कहिं पि रयणाई देवयाऽऽइवसा । बोही उ न पन्भट्ठा, लब्भइ अच्छतदुल्लभा ।।८८३७।। किंचजाहे य पावियव्वं, इहपरलोए य होइ कल्लाणं । ताहे चिय जिणभणियं, पडिवाइ भावओ धम्मं ॥८८३८॥
॥६७८॥