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संवेगरंगसाला
महिलासंसग-त्यागे गुणाः तद्विषये उपदेशः च ।
॥६२६॥
। थेरो बहुस्सुओ वि हु, पमाणभूओ मुगी तवस्सी वि। अचिरेण लहइ दोसं, महिलावग्गस संसग्गा ॥८१३३॥ कि पुण तरुणा अबहु-स्सुयाऽऽइणो सरुइचारिणो मंदा । तस्संसग्गीए मूलओ, (ते) विनट्ठ च्चिय भवंति ॥४१३४॥ महिलासंसग्गीए, अमाणुसाऽडविकडिल्लवासी वि । नइकूलवालगमुणी, विडंबणं पाविओ परमं ॥८१३५॥ जो महिलासंसग्गिं, विसं व दुराउ चेव परिहरइ । नित्थरइ बंभचेरं, जावजीवं अकंपं सो अवलोयणमेत्तेण वि, जं मुच्छं ताओ दें ति पुरिसस्स । तेण हयमहिलियाणं, नयणाई विसाऽऽलयाई फुड ॥८१३७।। मारेइ एकसि चिय, तिव्वविसभुयंगवग्गसंसग्गी । इत्थीसंसग्गी पुण, अणतखुत्तो नरं हणइ ॥८१३८॥ इय वयवणमूलग्गिं , थीसंसग्गिं सया वि जो चयइ । स सुहेण बंभचेरं, नित्थरइ जसं च वित्थरइ ॥८१३९॥ ता खवग! विसयवंछा, जइ होज कयाइ मोहदोसेण । तह वि हु होसु उवउत्तो, पंचविहे इत्थिवेरग्गे ॥८१४०॥ जायं पंकम्मि जलम्मि, वढियं पंकयं जह न तेहिं । लिप्पइ मुणी वि एवं, विसयसलिलइस्थिपंकेहि ॥८१४१॥ बहुदोससावयगणे, मायामाइण्हियासणाहम्मि । कुमइगहणे वि मुणी, न मुज्झइ इत्थिरबम्मि ॥८१४२॥ सबम्मि इत्थिवग्गम्मि, अप्पमत्तो सया सुवीसत्थो । बंभवयं णित्थरइ, चरित्तमूलं सुगइहे
॥८१४३॥ मज्झन्हतिकखसूरं व, इत्थिरूवं न पासइ चिरं जो। खिप्पं पडिसाहरइ य, दिढि सो नित्थरइ बंभं ॥८१४४॥ कि जंपइ कह पासइ, परो ममं कहमऽहं च वट्टामि। इइ जो सयाऽणुवेहइ, सो दढवंभवओ होइ ॥८१४५॥ जोव्वणजलहिं दरहसिय-जंपिउम्मीचियं विसयसलिलं । धण्णा समुत्तरंती, महिलामगरेहिं अच्छिक्का ॥८१४६॥
१ जंपिउम्मीचियं = जल्पितोमिचितम् ।
॥६२६॥
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