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________________ संवेगरंगसाला आरोविऊण चंपा-पुरीए नेऊण निययभवणम्मि । मुक्को य चारुदत्तो, पत्तो य समुन्नई परमं इय दुट्ठसिट्ठगोट्ठी-फलाई आलोइउ' इहभवे वि । निम्मलगुणड्ढसुवियडूढ-वुड्ढसेवाए जइयव्वं ॥८१२१॥ ॥८१२२॥ | महिलासंसर्गे दोषाः। ॥६२५॥ निचं वुड्ढसहावे, तरुणे वुड्ढे य सुट्ठ सेवंता। तह गुरुकुलमऽमुयंता, चरंति बंभव्वयं धीरा ८१२३॥ कामाणिलेण हिययं, पचलइ पुरिसस्स अप्पसारस्स । पेच्छंतस्स य बहुसो, इत्थीयणवयणरमणाणि ॥८१२४॥ __ मंथरगइठाणविलास-हासबिब्बोयहावभावेहि। सोहग्गरूवलावन-लट्ठसंठाणचेट्टाहि ॥८१२५।। अद्धच्छिपेच्छिएहि वि, विसेसदरहसियजंपियव्वेहिं । सरसपइकूखणसंलाव-ललियलीलाइयव्वेहि ॥८१२६।। पयईए सिणिद्धेहि, पयईए मणोहरेहिं पाएणं । थीसंतिएहिं पुरिसो, रहमिलणेहिं च खुभइ तओ ॥८१२७।। कमवढियपीइरइ-पावियवीसंभपणयपसरो य। लजालुओ वि पुरिसो, कि कि तं जन.वि करेइ ॥८१२८॥ तथाहिपिइमाइमित्तगुरुसिद्ध-लोयरायाऽऽइसंतियं लज। गउरवमऽवरोहं परि-चयं च दरेण परिहरइ ॥८१२९।। कित्ति अत्थविणासं, कुलक्कम पाविए य धम्मगुणे । करचरणकन्ननासाऽऽइ-लुंपणं पि हुन पेहेजा ॥८१३०॥ संसग्गीमूडमणो, मेहुणरमिओ विमुक्कमजाओ। पुन्वावरमऽगणे तो, किमऽकिच्च जं न आयरइ ॥८१३१॥ इंदियकसायसन्ना-गारवपमुहा सहावओ सन्वे । संसग्गिलद्धपसरे, पुरिसे अचिरा वियंभंति ॥८१३२॥ ॥६२५॥ सं.२.५३
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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