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संवेगरंगसाला
महिलामनसः दुर्जेयत्वम् ।
॥६१६॥
वग्घाऽऽइया य अहवा, दोसं न नरस्स तमिह कुव्बंति । जं कुणइ महादोसं, दुट्ठा महिला मणूसस्स ॥८०००॥ रोगों दारिदं वा, जरा व न उवेइ जाव पुरिसस्स । ताव पिओ हवइ नरो, कुलजायाए वि महिलाए ॥८००१॥ जुन्नो व दरिदो वा, रोगी व पिओ व होइ से विस्से। निप्पीलिओ व उच्छू, माला व मिलाणगयगंधी ॥८००२॥ महिला पुरिसमऽवन्नाए, चेव वंचेइ कूडकवडेहि। पुरिसो समुजओ वि हु, महिलं न चएइ वंचे ॥८००३॥ वाओलीउ व रयाऽऽउलाउ, मइलि ति महिलियाउ नरं । संझाउ ब्व अवस्सं, भवंति खणमेत्तरागाओ ॥८००४॥ जावइयाई जलाई, वीईओ वालुगा व जलहीसु । नइसु य हवंति तत्तो, महिलाचित्ताई बहुयाई ॥८००५।। आगासभूमिजलनिहि-सुरगिरिपवणाऽऽइणो वि पुरिसेहि । नाउँ सक्का न पुणो, कहमऽवि इत्थीण चित्ताई ।।८००६॥ चिट्ठति जहा न चिरं, विज्जू जलबुब्बुया व उक्का वा । तह न चिरं महिलाणं, एक्कम्मि नरे रमइ चित्तं ॥८००७।। परमाणू वि कहंचि वि, आगच्छेञ्ज गहणं मणूसस्स । न य सक्का घेत्तुं जे, चित्तं महिलाण अइसुहुमं ।।८००८॥ कुविओ वि कन्हसप्पो, दुट्ठो सीहो वि मत्तहत्थी वि । घेप्पइ कह वि नरेणं, न य चित्तं दुट्ठमहिलाए ॥८००९॥ उदगम्मि वितरइ सिला, सिही वि न दहेइ होइ हिमसिसिरो । न उण महिलाण कइय वि, उज्जुभावो भवइ पुरिसे॥८०१०॥ उज्जुगभावम्मि असंतयम्मि, कह होइ तासु वीसंभो । वीसंभे य असंते, का होज रई महिलियासु ॥८०११॥ गच्छेज समुद्दस्स वि, पारं पुरिसो भुयाहि तरिऊण । मायाजलमहिलोयहि-पारं न य सक्कए गंतुं ॥८०१२॥ रयणसहिया सवग्धा, गुहा व सीयलजला सगाहा य । सरिय व जणमगहरा (विहु), उब्वियणिज्जा यही! महिला ॥८०१३॥
॥३१६॥