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________________ संवेग रंगसाला महिलानां |दुर्गुणाः । IA ॥६१५॥ इहलोगे वि महल्लं, दुक्खं कामस्स वसगओ पत्तो। मरिच पावबद्धो, कडारपिंगो गओ नरयं ॥७९८८॥ एए सव्वे दोसा, न होति पुरिसस्स बंभयारिरस्स । तश्विरीया य गुणा, भवंति विविहा विरागिस्स ॥७९८९॥ महिला इहपरभविए, हणिऊण गुणे नरस्स सवसस्स । उभयभवदुक्खजणगे, दोसे नियमेण आणेइ ॥७९९०॥ महिला सहावकुडिला, १अडणिव बहु पि अणुसरिज'ती। पुरिसं सभूमिगाउ, वालिय विविहं भमाडेइ ।।७९९१॥ महिला पहधूलिसमा, सहावकलुसा अकलुसपयई पि । लद्धप्पसरा पुरिसं, सव्वंग चेव कलुसेइ ॥७९९२॥ महिला वंसकुडंगी व, गहणभूया सहावओ चेव । संपन्नफला वि हु कुणइ, निययवंसक्खयं दुट्ठा ॥७९९३॥ महिलासु नत्थि वीसंभएण, पणयपरिचयकयन्नुयाऽऽइगुणा । उज्झंति नियकुलाई, जमऽन्नचित्ताओ ताओ लहुं ॥७९९४॥ पुरिसे वीसंभेइ, महिला हेलाए चेव पुरिसा उ । महिलं वीसंमेउ', बहुप्पयारेहि वि न सका ॥७९९५॥ अइलहुगे वि अविणए, कयम्मि सुकयाण लकखमऽगणेती। पइमऽप्पाणं सयणं, कुलं धणं नासए महिला ॥७९९६।। अहवाअकए वि हु अवराहे, नारीओ नरंऽतरे कयमणाओ। कुव्वंति वहं पइणो, सुयस्स ससुरस्स पिउणो वि॥७९९७॥ सकारं उवयारं, गुणं च सुहलालणं च नेहं च । महुरवयणं च महिला, परप्पसत्ता परिप्फुसइ ॥७९९८॥ चोर ग्गिवग्यविसजलहि-मत्तगयकसिणसप्पसत्तुसु । सो वीसंभं गच्छइ, वीसंभइ जो महिलियासु ॥७९९९।। १ अडणी = मार्गः । ॥६१५॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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