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________________ संवेगरंगसाला कामसुखस्य अशुभत्वं दृष्टान्ताःच ॥६१४॥ पढमे चितइ वेगे, दट्टुं ते इच्छए बिइयवेगे। नीससइ तइयवेगे, आरुहइ जरो चउत्थम्मि ॥७९७४|| डज्झइ पंचमवेगे, अंग छढे न रोयए भत्तं । मुच्छिाइ सत्तमए, उम्मत्तो होइ अट्ठमए ॥७९७५॥ नवमे किंपि न याणइ, दसमे पाणेहिं मुच्चइ अवस्सं । संकप्पवसेण पुणो, वेगा तिव्वा य मंदा य ॥७९७६॥ सूरऽग्गी दहइ दिया, रत्तिच दिवा य दहइ कामऽग्गी। सूरग्गिणोऽस्थि उच्छा-यणं पि कामग्गिणो नत्थि ॥७९७७॥ विज्झायइ सूरग्गा, जलोवयाराऽऽइणा न कामग्गी । सूरग्गी दहइ तयं, सबाहिरऽभतरं इयरो ॥७९७८॥ कामपिसायग्गहिओ, हियम हियं वा न अप्पणो मुणइ । पेच्छइ कामंग्वत्थो, हियं भणंतं पि सत्तुं व ॥७९७९॥ कामग्घत्थो पुरिसो, तिलोयसारं पि चयइ सुयरयणं । तेलोकपूइयं न य, माहप्पं पि हु गणइ मूढो ॥७९८०॥ तेलोक्कपूयणिज्जे, जिणेहिं भणिए सयं च विन्नेये । मन्नइ तणं व तवनाण-चरणदंसणवरगुणे वि ॥७९८१।। अरहंतसिद्धआयरिय-वायगाणं च साहुवग्गस्स । कुणइ अवन्नमऽधन्नो, अविभावेतो भवुत्थभयं ॥७९८२।। अयसमऽणत्थं दुखं, इहलोए दुग्गइं च परलोए । संसारं च अणतं, न गणइ विसयाऽऽमिसे गिद्धो ॥७९८३।। लल्लकनरयवियणाउ, घोरसंसारसायरुब्रहणं । संगच्छइ न य पेच्छइ, तुच्छत्तं कामियसुहस्स ॥७९८४॥ गायइ नच्चइ धोवइ, चलणजुयं पि हु मलेइ अंगाई । सोहइ मुत्तपुरीसं, कुलम्मि जाओ वि विसयवसो॥७९८५॥ वम्महसरसयविद्वो, गिद्धो वणिओ ब्व रायपत्तीए । पाउक्खालयगेहे, दुग्गंधे णेगसो वसिओ ॥७९८६।। कामुम्मत्तो न मुणइ, गम्माऽगम्मं च वेसियागो व्य । सेट्ठी कुबेरदत्तो ध, नियसुयासुरयरइसत्तो ॥७९८७।। ॥६१४॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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