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________________ संवेगरंगसाला सत्यवचनस्य प्रभाव: अलीकवचनस्य दोषाः च । ॥६११॥ सच्च वयंति रिसिणो, रिसीहिं विहियाउ सव्वविजाउ । मेच्छस्स वि सिझंती, नियमेणं सच्वाइस्स ॥७९३४॥ विस्ससणिजो माय ब्व, होइ पुञ्जो गुरुव्व लोगस्स । सयणो ब्व सच्चवाई, पुरिसो सव्वस्स होइ पिओ ॥७९३५।। सच्चम्मि तवो सच्चम्मि, संजमो तम्मि चेव सव्वगुणा । इह संजओ वि मोसेण, होइ तणतुच्छओ पुरिसो।।७९३६।। न डहइ अग्गी न जलं पि, बोलए सच्चवाइणं पुरिसं । सच्चबलियं सुपुरिसं, न नेइ तिकूखा गिरिनई वि ॥७९३७।। सच्चेण देवयाओ, नमंति पुरिसस्स ठंति य वसम्मि। सच्चेण गहग्गहियं, मोइंति करेंति स्कूख च ॥७९३८॥ सच्चं ववगयदोसं, वोत्तूण जणस्स मज्झयारम्मि । पावइ परमं पीइं. जसं च जयविस्सुयं लहइ ॥७९३९॥ मायाए वि हु वेसो, पुरिसो अलिएण होइ एकण । कि पुण सेसाण भुयं-गमो व्व नो होज अइवेसो॥७९४०॥ अप्पच्चओ अकित्ती, धिक्कारो कलहवेरभयसोगा। धणनासो वहबंधो, असच्चवाइम्मि संनिहिया ॥७९४१॥ परलोगम्मि वि दोसा, ते चेव हवंति अलियवाइस्स । चोरिकाऽऽई सेसे, जत्तेण वि परिहरंतस्स ॥७९४२॥ इहलोगपारलोइय-दोसा जे होति अलियश्यणस्स । कक्कसवयणाऽऽईण वि, दोसा ते चेव नायव्वा ॥७९४३॥ अलियं पयंपमाणो, एमाऽई पावए बहू दोसे । परिहरमाणो तं पुण, तव्विवरीए य लहइ गुणे ॥७९४४॥ मो कुणसु धीर! बुद्धि, अप्पं च बहुच परधणं घेतं । दंतंतरसोहणयं, किलि'चमेतं पि अविइण्णं ॥७९४५॥ जह मकडओ पक्कफलाई, दट्ठण धाइ धाओ वि । इय जीवो परविहवं, विविहं दट्टण अहिलसइ ॥७९४६॥ १ भ्रातः = तृप्तः । ॥६११॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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