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संवेगरंगसाला
| सम्यगज्ञानोपयोगद्वार-स्वरूपम्।
॥६००॥
अह भीएणं रना, जिणदत्तो खामिऊण पम्मुक्को। इय हुडियचोरस्स व, परलोगसुद्दो नमुक्कारो ॥७७८९॥ एवं च उभयलोगे वि, सोक्खमूलं इमं मुणेऊणं । आराहणाऽभिलासी, खवग! तुम सइ सरेज जओ ॥७७९०॥ "पंचण्ह णमोकारो, जीवं मोएइ भवसहस्साओ। भावेण कीरमाणो, होइ पुणो बोहिलाभाय ॥७७९१॥ पंचण्ड णमोकारो, धन्नाण भवकखयं करेन्ताणं । हिययं अणुम्मुयंतो, विसोत्तियावारओ होइ
||७७९२॥ पंचण्ह नमोकारो, एवं खलु वन्नियो महऽत्यो त्ति । जो मरणम्मि उवग्गे अभिकखणं कीरए बहुसो ॥७७९३॥ पंचण्ड नमोकारो, सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसि', पढम भवइ मंगलं"
॥७७९४|| इय ताव भणियमेयं, पंचनमोकारनामपडिदारं। सम्मन्नाणुवओगामि-हाणमऽखेमि अह नवमं ॥७७९५।। खमग! पमायं उम्मूलिऊण, नाणोवओगवं होसु । जम्हा सव्वाऽऽवाहा-विवज्जियं जीवलोगस्स ॥७७९६।। नाणं चकूखू नाणं, पईवओ नाणमेव दिणणाहो। तिहुयणतिमिसगुहाए, पगासरयणं परं नाणं ॥७७९७॥ जइ ताव नाणचक्खू , न होज जीवाण जीवलोगम्मि । ता मोक्खमग्गविसया, सम्मपवित्ती न जाएजा ॥७७९८॥ कह वा कुबोहसलहाऽ-वहारिनाणप्पईवविरहेण । होजा जयं वराय, मिच्छत्ततमोभरऽकंतं
॥७७९९॥ तह फुरइ फुड हयतम-सनाणदिवायरप्पभावेण। संसारसरे सुंदर-विवेयकमलाऽऽयरवियासो ॥७८००|| तिहुयणतिमिसगुहाए, अन्नाणतमंऽधयारघोराए। जइ नो हुँतो सन्नाण-कागणीरयणवावारो
॥७८०१२॥ ता कह इमं वरायं, मूढ जिणचक्किमग्गमऽणुलग्गं । अप्पडिहयप्पयारं, इह 'नीहंतं भवियसेणं ||७८०२॥
१ नीहंत = निरसरिष्यत् B |
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