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________________ संवेगरंगसाला नमस्कारस्य अत्यादरेण श्रवणं कुर्यात् । ॥५९५॥ कारा एसो स सारगंठी, एस स को वि हु दुलंभलंभो त्ति । एसो स इट्ठसंगो, एयं तं परमतत्तं ति ॥७७२५॥ अहह ! तडत्थो जाओ, नूणं भवजलहिणो अहं अज । अन्नह कहिं अहं कह व, एस एवं समाओगो॥७७२६॥ धन्नो हं जेण मए, अणोरपारम्मि भवसमुद्दम्मि । पंचण्ह नमोकारो, अचिंतचिंतामणी पत्तो ॥७७२७॥ कि नाम अञ्ज अमय-तणेण सव्वंऽगियं परिणओ हैं। कि वा सयलसुहमओ, कओ अकंडे वि केणावि ॥७७२८॥ इय परमसमरसापत्ति-पुव्वमाऽऽयन्निओ नमोकारो। निहणइ किलिट्टकम्म, विसं व सियधारणाजोगो ॥७७२९॥ जेणेस नमोकारो, सरिओ भावेण अंतकालम्मि । तेणाहूयं सोकूखं, दुक्खस्स जलंजली दिन्नो ॥७७३०॥ एसो जणओ जणणी य, एस एसो अकारणो बंधू । एसो मित्तं एसो, परमुवयारी नमोकारो ७७३१॥ सेयाण परमसेयं, मंगल्लाणं च परममंगल्ल । पुन्नाण परमपुन्न, फलं फलाणं नमोकारो ॥७७३२॥ तह एस नमोकारो, इहलोगगिहाओ जीवपहियाण । परलोयपहपयट्टाण, परम पच्छयणसारिच्छो ॥७७३३॥ जह जह तस्सवणरसो, परिणमइ मणम्मि तह तह कमेण। खयमेइ कम्मगंठी, नीरनिहित्ताऽऽमकुंभो व्व ॥७७३४॥ तवनियमसंजमरहो, पंचनमोकारसारहिपउत्तो। नाणतुरंगमजुत्तो, नेइ नर नेव्वुइनगर ॥७७३५।। जलणो वि होज्ज सीओ, पडिपहहुत्तं वहेज्ज सुरसरिया। न य नाम न नेज्ज इमो, परमपयपुरं नमोकारो॥७७३६॥ आराहणापुरस्सर-मणबहियओ विसुद्धलेसागो। संसारुच्छेयकरं, ता मा सिढिलसु नमोकारं ॥৩৩3৷ १ पच्छयण = पथ्यदनं = शम्बलम् । ॥५९५॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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