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संवेगरंगसाला
नमस्कारस्य सर्वकार्यसिद्धौ सामर्थ्यम् ।
॥५९२॥
दीसइ सुणिजए वा, जो को वि हु कहवि कस्स वि जियस्स । सव्वो वि सो नमोक्कार-सरणमाहप्पनिफनो॥७६८४॥ जलदुग्गे थलदुग्गे, पव्वयदुग्गे मसाणदुग्गे वा। अन्नत्य वि दुत्थपए, ताण सरण नमोकारा ॥७६८५।। वसियरणुच्चाडणथोभ-णेसु पुरखोभथंभणाऽऽइसु य। एसो चिय पञ्चलओ, तहा पउत्तो नमोकारो ॥७६८६।। मंतंऽतरपारद्भाई, जाई कजाई ताई वि समेइ। ताण' चिय नियसुमरण-पुव्वाऽऽरद्वाण सिद्धिकरो ॥७६८७॥ ता सयलाओ सिद्धीओ, मंगलाई च अहिलसंतेण। सव्वत्थ सया सम्म, चितेयव्यो नमोकारो ॥७६८८॥ १ जागरण-सुयण-छीयण-चिट्ठण-चंकमण-खलण-पडणेसु। एस किर परममंतो, अणुसरियन्वो पयत्तेण ॥७६८९॥ । जेणेस नमोकारो, पत्तो पुन्नाऽणुबंधिपुण्णेण । नारयतिरियगईओ, तस्साऽवस्स निरुद्धाओ
॥७६९०॥ न स पुणरुत्त पावइ, कया वि किर अयसनीयगोत्ताई। जम्मंऽतरे वि दुलहो, तस्स न एसो नमोकारो॥७६९१।। जो पुण सम्म गुणिउ', नरो नमोकारलकूखमऽखंड। पूएइ जिण संघ, बंधइ तित्थयरनाम सो ॥७६९२॥ होन्ति नमोकारपभा-बओ य जम्मऽतरे वि किर तस्स । जाईकुलरूवाऽऽरोग्ग-संपयाओ पहाणाओ ॥७६९३॥ ताव न जायइ चित्तेण, चिंतिय पत्थिय च वायाए। कारण य पारद्धं, जाव न सरिओ नमोकारो ॥७६९४।। अन्नं च इमाउ च्चिय, न होइ मणुओ कयाइ संसारे। दासो पेसो दुइगो, नीओ विगलि दिओ चेव ॥७६९५॥ इहपरलोयसुद्दयरो, इहपरलोयदुइदलणपच्चलओ। एस परमेट्ठिविसओ, भत्तिपउत्तो नमुक्कारो
॥७६९६॥ कि वन्निएण बहुणा, त नत्थि जयम्मि जकिर न सको। काउं एस जियाण, भत्तिपउत्तो नमुक्कारो ॥७६९७॥
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