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________________ संवेगरंगसाला नमस्कारआराधनाया: इन्द्रत्वादिफलं। ॥५९१॥ आजम्म हारुवसट्ठि-मंसरुहिराऽऽइतणुमलविमुक्को। आजम्म अमिलायन्त-मल्लवरदेवदसधरो ॥७६७०॥ उत्तत्तजच्चकंचण-तरुणदिवायरसमप्पहसरीरो। पंचप्पहरयणाऽहरण-किरणकब्बुरियदिसियको ॥७६७११॥ अखंडगंडमंडल-लुलंतकुडलपहापहासिल्लो। रमणीयरसणअमरण-रमणीगणमणहरो कि च ॥७६७२॥ गहचक्कमेक्कहेल', पाडेउ भूयल' भमाडेउ। सयलकुलाऽचलचकं, चूरेउ तह य लीलाए ॥७६७३॥ माणसपमुहमहासर-सरियादहसायराण सलिलाई। पलयपवणो व्व समकाल-मेव सत्तो विसोसेउ ॥७६७४॥ तेलोकपूरणस्थ झत्ति विउव्वियमहल्लबहुरूवो। परमाणुमेत्तरूवो वि, तह य होउ लहु समत्थो ॥७६७५।। तह एककरंऽगुलिपंचगस्स, पत्तेयमऽग्गभागेसु । मेरुपणगाउ एकेक्क-मेक्ककाल धरणसत्तो ॥७६७६॥ कि बहुणा सन्त पि हु. असंतय तह असंतमवि संत। वत्थु एक्कखणे चिय, दंसेउमऽल करेउ च ॥७६७७।। नमिरसुरविसरसिरमणि-मऊहरि छोलिविच्छुरियपाओ। भूभंगाऽऽइट्ठपहिट्ठ-संभमुट्टितपरिवारो ॥७६७८॥ चिंताऽणंतरसहसत्ति-संघडंताऽणुकूलविसयगणो। अणवरयरइरसाऽऽविल-विलासकरणेकदुल्ललिओ ॥७६७९॥ निम्मलओहिन्नाणा-ऽनिमेसदिट्ठीए दिट्ठदट्ठन्यो। समकालोदयसमुवित-सयलसुहकम्मपयई य ॥७६८०॥ रिद्धिप्पबंधबंधुर-विमाणमालाहिवत्तण सुइरं। पालइ अखलियपसर', सुरलोए किर सुरेंदो वि ॥७६८१॥ त' पि असेस जाणसु, सम्म सब्भावगम्भविहियस्स। पंचनमोक्काराऽऽरा-हणस्स लीलाइयलवोत्ति ॥७६८२॥ उढाऽहोतिरियतिलोग-रंगमज्झम्मि अइसयविसेसो। दवं खेत्तं काल, भाव च पडुच्च चोजकरो ॥७६८३॥ ॥५९॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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