________________
संवेगरंगसाला
कनकरथमृपस्य शत्रुनृपेण सह संग्राम: मन्त्रिशिक्षा च।
॥५८५॥
अह मेहसंघनिग्योस-निब्भरेणं वेण लहु तीए । मुणियपयाणपओयण-मुवद्वियं चाउरंगवलं
॥७५९३॥ ताहे तेणाऽणुगओ, कणगरहमहीवई ददं कुविओ। अविलंबियप्पयाणेहि, सत्तणो भूमिमऽणुपत्तो ॥७५९४॥ अह तं आगयमुवलकिखऊण, उव्बूढगाढरहसेण । पडिरिउणा पारद्वो, सुमहंतो समरसंरंभो ॥७५९५॥ अह मुक्कचकनारायवग्ग, उत्थरिय सुहड तेइण उदग्ग । कंकणमणिकंतिकयाऽवरोह, नं कुवियकयंतह दिद्विछोह ॥७५९६।।
मणपवणवेगतुरयाण थट्ट, रिउसेन्निण सह जुज्झिण पयट्ट । हयदंड सहहिं पुंडरीयजाल, मुंजेवि चत्त नं जमिण थाल ।
७५९७॥ पडिवकूखवग्गनिल्लुणियकंठ, रणकम्मणतोसियतियसवंठ । णियसामिकञ्जपरिचत्तदेह, कयकिच्च नाइ नच्चिय सुजोह ।।
॥७५९८॥ रुहिरद्दमुंडमंडियधरित्ति, रत्तुप्पलेहिं नं रइय मित्ति । दोहंडियकुंजर भूमिवडिय, नं रेहहि अंजणकूड खुडिय ॥७५९९।।
इय एवंविहसंगरि बहुजणखयकरि, वटुंतइ मिहिलाहिवेण । नियकुंजरु चोयाविउ रणपहे ठाविउ, रिउसवडम्मुहु दुवरिण ॥
॥७६००॥ एत्थंतरम्मि मंतीहि, जंपियं देव ! विरमह रणाओ। मा पूरह सत्तूणं, मणोरहे नियह नियसत्ति ॥७६०१॥ एसो हि उत्तरदिसा-नराहिवो समरकम्मपरिहत्थो। तियसकयपाडिहेरो, पयंडपक्खो महासत्तो ॥७६०२॥ एवं गूढचरेहि, णिवेइयं अम्ह संपयं चेव । ता न खमं खणमेत्तं पि, अच्छि एत्थ थाणम्मि ॥७६०३॥
॥५८५॥