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________________ सवेगरंगसाला सम्यक्त्वद्वारस्वरूपम् । ॥५८१।। जह जह संगच्चाओ, तह तह कम्माण अवचओ होइ । जह जह सो पुण तह तह. आसन्न होइ परमपयं ।।७५३९।। । | आराहगाकयमणो, मुणिवर! सव्वं पि पावपडिबंध । ता दुरमुज्झिऊणं, आयाऽऽरामो भवसु निच्च ॥७५४०॥ पचममेवं भणियं, पडिबंधच्चायनामपडिदारं । सम्मत्तविसयमेत्तो, छटुं पडिदारमऽकूखेमि |७५४१॥ जमणंतम्मि वि न कयाइ, पत्तपुव्वं अईयकालम्मि । लंघिजइ गोपयमिव. जस्सामत्थेण भवजलही ॥७५४२।। अल्लियइ पाणिकमले, जस्स पभावेण मोकखसोकरखसिरी। जं च पवेसवारं, महल्लकल्लाणकोसस्स ॥७५४३।। मिच्छत्तपबलहुयवह-तावियजीवाण जं च अमयं व । पडियारपर्य पत्तं, सम्मत्तं खवग! तं तुमए ॥७५४४॥ : एत्थ य संपत्तम्मि, मा भाहिसि भीमभवभयाहितो। एयाऽणुगएहिं जओ, भवस्स सलिलंजली दिन्नो ॥७५४५।। नरयम्मि वरं अइदीहरं पि, कालं ठिओ सम इमिणा। मा पुण एयविउत्तस्स, देवलोगे वि उववाओ॥७५४६॥ जम्हा नरयाउ इहाऽऽगयाण, सुद्धस्स तस्स अणुभावा । सुव्वंति केसु वि सुए, तित्थयरत्ताऽऽइलद्धीओ ॥७५४७।। सम्मत्तगुणविहीणस्स, देवलोगाओ पुण चुयस्सेह । पुढवाऽऽईसु वि गमणं, सुबइ दीहट्टिई य तहिं ॥७५४८॥ • अंतोमुत्तमत्तं पि, फासियं जइ भवेज कहवि इमं । ता एस अणाऽऽई वि हु, भवोयही ग्रोपर्य मण्णे ॥७५४९॥ धणवमऽधणो वि पुरिसो, सम्मत्तमहाधणं हि जस्सऽथि । इहभवसुही जइ धणी, सुही सुदिट्ठी पइभवंपि ॥७५५०॥ सम्मत्तरयणमइयार-पंसुपरिवज्जियं मणोभवणे । जस्स वियंभइ मिच्छत्त-तिमिरविहुरो कहं स भवे ॥७५५१॥ ॥५८१॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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