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________________ संवेगरंगसाला जाति-कुलरूपकथानां | स्वरूपम् । १॥५६७॥ SCS धी! जीविएण खत्तिणि-बंभणिवेसीण बालविहवाणं । जीवन्तमयाए सव्व-ओ वि तह संकणिजाण ॥७३६५।। सुद्दीओ च्चिय मण्णे, धण्णाउ जयम्मि नवरमेकाउ । नो जाण नवनवऽन्नऽन्न-पुरिसकरणे वि दोसोत्थि॥७३६६॥ जाइकहा । उग्गाऽऽइ-कुलुप्पन्नाण-मन्नतरगाण जा पुण पसंसा। निदा वा किर कीरइ, भणंति तं कुलकहं ति जहा ॥७३६७।। चोलुक्कसुयाणं चिय, तहाविहं साहसं न अन्नाणं । निप्पेमा वि हु पविसंति, जाउ जलणं पइम्मि मए ॥७३६८॥ कुलकहा। जा पुर्ण रूवपसंसा, धिप्पमिईण अन्नतरंगाए । निदा वा तम्विउणो, तं रूवकह भणंति जहा। ॥७३६९॥ लीलाललंतलोयणमुहीसु, लायन्नसलिलजलहीसु । रइरमणो वि हु अधीसु, चेव सव्वंगमऽल्लीणो ॥७३७०॥ अहवाधूलिपंगुरियतणू, जउमयमणिया वि नो गले बहुया । जट्टीए कारविया, उट्ठवइस्सं तहवि पहिया ॥७३७१॥ रूवकहा। तासि चिय अन्नयरीए, जाउ नेवत्थसंसणाऽऽइया। सा पुण नेवत्थकहेह, देसिया तविऊहिं जहा ॥७३७२॥ अत्तुच्छीष्णच्छेणं, नेवत्थेणं सुछाइयंगीए। वियसंतनयणनीलु-प्पलाए सोहग्गवावीए ॥७३७३॥ नारीए उ दिव्वाए, घिरऽत्थु तारुण्णयस वरुणेहिं । लायनजलं नयणंड-जलीहि नाऽपिज्जए जीए ॥७३७४॥ ॥५६७॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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