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________________ संवेगरंगसाला ॥५६५॥ | चौरभगिन्या कृते शिलापातने निद्रात्यागेन अगडदत्तस्य रक्षणम् । भणिो य अगलदत्तो, वीसमसु खगं इहं महाभाग ! । वीसंता सो य तह, नवरं एवं विचितेइ ॥७३४०॥ नूणं न सुंदरमिहाऽ-वत्थाणं मा भवेज कूडमिमं । ता निदं अकुणंतो, ठामि इमा वच्चए जाव ॥७३४१॥ अह ठाऊण खणं सा, जंतनिवाडणकरण नीहरिया । इयरो वि पएसन्तर-मल्लीणो उज्झिांसेज ॥७३४२।। तीए य कीलियं फे-डिऊण सा पाडिया सिला सहसा । भग्गा य तीए सेजा, सव्वत्तो निवडमाणीए॥७३४३।। तो परमहरिसपसरिय-वियसियहिययाए तीए सलत्तं । हा ! सुटु हओ दुवो, मह भाउविणासकारि ति॥७३४४।। तो धाविऊण धरिया, केसकलावम्मि अगलदत्तेण । हा! हा ! दासीधीए !, को मं हणइ त्ति भणिरेण ।।७३४५॥ पाएसु निवडिऊण य, संलत्तं तीए रकूख रक्ख त्ति । चत्ता तत्तो नीया य, राइणो पायमूलम्मि ॥७३४६।। सयलो से वुत्तता, सिट्ठो तुडेण तो महीवइणा। दिन्ना महई भुत्ती, लोगेण य पूइओ बाढं ॥७३४७॥ सव्वत्थ जायकित्ती, गओ य कालक्कमेण नियनगरि। दिन्ना पिउणा भुत्ती, रना सक्कारिऊणं से ॥७३४८॥ निद्दाचागाऽचागे, एवं संपेहिऊण गुणदोसे । इहपरभवसुहकामी, को बहुमन्नेज निदं ति ॥७३४९॥ किच| नरवइसेवापमुहे, ववसाए बहुविहे वि इहभविए । सज्झायज्झाणाऽऽई, परभविए वि हु हणइ निदा ॥७३५०॥ ॥ रिउणो लहंति छिड', डसंति सप्पा पसुत्तमह कहवि । अग्गीए होइ गम्मो, सुविरो त्ति हसंति मित्ताऽई ॥७३५१।। दोसकरोवरिसंठिय-जियमुत्ताई मुहेऽहवा पडइ । अह खुद्ददेवया वा, छलइ पसुत्तं पमत्तं ति ॥७३५२॥ S सं.रं. ४८ ॥५६५॥
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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