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________________ संवेगरंगसाला तप-ऐश्वर्यमदस्थाने बुद्धिवल्लभत्वमदस्वरूपम् । ॥५३९।। ता कि इमेहि नियमा, विणाससीलेहि कडुविवागेहि। दुग्गइनिबंधणेहि, भूवइचोराऽऽइगोहि ॥६९९६॥ हिययाऽऽयासकरेहि', दुस्संठप्पेहि दुकूखदेएहि । सव्वासु अवत्थासु, बाद सम्मोहजणएहि ॥६९९७॥ एवं विभाविऊणं, इन्भो मोत्तूण सव्वमावि संगं । सुगुरुसमीवे सम्मं, पडिवन्नो सुमुणिपव्वज ॥६९९८॥ इय इस्सरियं नाउ, विणस्सरं तम्मयं कहं कुसलो। कुजा तहाविहे वि हु, विहवे पत्तम्मि कम्मवसा ।।६९९९।। तहासीसा सीसिणियाओ, आणापरसव्वसंधपरिसा मे । मह सपरसमयसंतिय-महत्थपोत्थयपवित्थारो ॥७०००। मह पउरवत्थपायाऽऽ-सणाई अहमेव पउरजणनेयो । एवंपमुहो वि दद, इस्सरियमओ अणिफलो ॥७००१॥ एवं अट्ठपयारं, मयं निरुद्ध ऽगिसोग्गइपयारं । कयषणतमंऽधयारं, मा काहिसि बहुदुहवियारं ॥७००२॥ अहवा तवइस्सरिय-ट्ठाणेसु बुद्धिवल्लहत्ताई। वत्तव्वाई तेसि, सरूवमेयं समवसेयं ।।७००३॥ गहणुग्गाहणनवकिइ-वियारणट्ठाऽवधारणाऽईसु । बुद्धीए वियप्पेसु, अणंतपजायवुड्ढेसु ७००४॥ पुव्वपुरिससीहाणं, विनाणोऽइसयगुणअणंतत्तं । सोउ संपयपुरिसा, कह नियबुद्धीए जंति मयं ॥७००५॥ चाडसएहि काऊण, वल्लहं अप्पयं परजणस्स । सुणहो व्व ही! वराओ, गरुयमरट्ट पय इ ॥७००६॥ तह तेणेव स मण्णइ, इमस्स अहमेव वल्लहो एको। कत्ता हत्ता च अहं, एयगिहे सव्वकज्जेसु ॥७००७॥ न उण वियाणइ मूढो, पुराकडेहिं सुनिउणपुन्नेहिं । एयस्स पुननिहिणो, विहिओ सव्वंगकम्मयरो ॥७००८॥ पपई ॥५३९।।
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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