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________________ संवेगरंगसाला नृपविकल्पाः ॥१५॥ तो तेण चिंतियमिम, किं कोइ इमो सुरो व्य खयरो व्य । होज्ज व विज्जासिद्धो, एवं विहसत्तिस जुत्तो ॥१५२।। जइ ताव सुरो कि तस्स, माणुसीए इमीए किर कज्ज । अह खयरो सो विन भूमि-गोयरिं नूण वंछेज्जा ।।१५३।। विज्जासिद्धो वि विसिट्ठ-रूवपायालजुबइपमुहासु । संतीसु दिव्यनारीसु, कह इमं अणुसरेज्ज धुवं ॥१५४।। अहवा पासविसपिर-कयन्तवसजायधाउखाहस्स । कम्स न कस्स व हिययं, काउमकजं अमिलसेजा ॥१५५।। किं वा इमिणा सो को वि, हाउ जुज्जइ न संपयमुवेहा । भजंपि अरक्वन्तो, कह रक्खिस्सामि महिवलयं ॥१५६॥ देसंतरेसु वि इमा, मज्झ कलंको चिरं पवित्थरिही । एत्तो च्चिय रामा वि हु, सीयाए कए गो लंक ॥१५७।। ता जावजवि णो दूर-देसमणुसरइ सो दुरायारो। ताव सयमेव गंतूण, तं अणज निगिहामि ॥१५८॥ थंभणपमुहं चिरसिक्खियं च, विजाबलं परिक्खामि । इति चिंतिय कइवयसुहड-संगओ पट्ठिओ राया ॥१५९॥ अह भूमिवई मुणिउंचलियं, चलिओद्धरसिन्धुरभीमयरं । मयराइधयाउलभूसिरहं, रहसुब्भडसेवगरुद्धदिस ॥१६॥ दिसिचक्कपबट्टतुरंगगणं, गणनायकदण्डबईहिं जुयं । जुवइजणकायरखोभकरं, करहोहपरोवियवक्खरयं ॥१६१॥ रयजाणवसुक्खयवखोणिरयं, स्यणुब्भडभूसणवित्थरियं । छुरियाइमहाउहदिन्नभय, भयकंपिरवालयचत्तपहं ॥१६२॥ पहसंतपदंतसुमागहा, हयहेसियतासिअसिखलय । लयणग्गगयं गिहिसच्चवियं, वियसन्तमहाभडलायणयं ॥१६॥ नगरीउ बहुं चउरंगबल, बलवन्तविपक्खक्खएकसहं । सहस च्चिय पाविय भूस्मिह, महसेणणुमग्गिण नीहरियं ॥१६॥ अह तेण समग्गेण वि, परियरिओ पवरतुरगमारूढा । ऊसियसियायवसो, राया जा जाइ थेवपह ॥१६५॥ ॥१५॥ क
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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