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________________ संवेग रंगसाला ग्रन्थस्वरूप वर्णनम् ॥७॥ तिा तव्वुढिकए चिय, न केवल कम्मवाहिविहुराणं । भवियाणमप्पणो च्चिय, चिरगुरुवेजोवएसाओ ॥५६।। मेलित्तु वयणदव्वे, भावाऽऽरोगेकहेउमारद्धं । आराहणारसायण-मेयं अजरामरत्तकर ॥५७॥ किंचपरिगलइ पावसलिल, ठियस्स आराहणाससिपहाए । जीवससिकतमणिणो, पइक्रवण दिव्वजोइस्स ॥५८|| संवेगसारमेसा, वायंत-सुणंत-भावमाणाण । काही कलुस पि मण, विमल कयगष्फलं व जलं ॥५९।। एत्तो चिय ललियपया, अकुडिल-कोमल-सुहऽत्थकलिया य । अक्खंडलक्षणवरा, सुवष्णरयोजलसरीरा ॥६॥ सुईसुहयभदंसदा, विविहाल कारकलियसव्वंगा । उल्लसियपसन्तरसा, पगिट्टपरलाय विसयकरा ॥६॥ वहुभावविरयणाउ, उप्पायंती परं परागंदं । परिहरियअसग्गाहा, अणत्थबहुला य न कहिं पि ॥६२॥ बहुएहिंतो उवजीवि-यऽत्यसारा महाभुजिस्सेव । करणविहीए वि हु कय-परिस्समा मूलकालाओ ॥६३॥ अप्पसमरइपरागं, निच्चं पि हु विहियमोहणासाणं । नाणाऽऽभोगरयाणं; उदग्गवयसंगयाणं च ॥६४॥ समणं वियडूढविलासीण, काण मणहरणकारणं न इमा । नयणसुहदाईणी भाव-णिज्जवयणा य नो होही ॥६५॥ [छहिं कुलयं] एवं चिय दूरुज्झिय-निययपरिग्गहपसंगवंछाण । सुगिहत्थाण वि निव्वुइ-निमित्तमेसा कह न होही ॥६६।। किंच१.कता (वृक्षविशेष) ||७||
SR No.600386
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
PublisherKantilal Manilal Zaveri
Publication Year1969
Total Pages836
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size20 MB
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